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________________ १०६ जैनराजतरंगिणी मार्गपति विदेशी सैन्य के गर्व से, गुसिकोडार में शिविर स्थापित किया। सेना का तीन भाग किया। कल्याणपुर फतह खान गया है, सुनकर उस दिशा में प्रस्थान किया। द्रामगामा के समीप, खान मरुग में फतह खान के समीप, स्थित हो गया। दोनों पक्षों में युद्ध आरम्भ हुआ। फतह खान के सैनिक विजय प्राप्त किये । किन्तु भूल से मार्गपति के सम्मुख आ गये । मार्गपति के बीरो ने हस्सन मीर आदि को पहचान लिया। भट्ट, नौरुज सहित अनेक वीर मार्गपति के सैनिकों द्वारा मारे गये। मार्गेश ने अपूर्व धैर्य एवं स्थिरता का परिचय दिया। उसके पक्ष के जो लोग तटस्थ होकर, दूर चले गये थे, मिथ्या घोषणा'फतह खान बन्दी बना लिया गया है' सुनकर पुनः उससे मिल गये । गक्क आदि खान के शिविर को लूट लिये। श्रृंगारसिंह आदि वीर भागकर, भेडावन मार्ग से अपने अपने स्थानों पर चले गये। राजपुरी सेना की अभयदान द्वारा गक्क आदि ने रक्षा की। भागती सेना को खसों तथा डोम्बों ने लूटा । शीत एवं भूख से अनेक सैनिक मर गये। फतह खाँ विवेकी पुरुष था। रणनीति जानता था। परन्तु उसके सैनिक उतने अच्छे नही थे। कल्याणपुर के निकट दोनों सेनाओं में पुनः युद्ध हुआ। जहाँगीर बाल राजा को लेकर, जमाल मरुग गया। ताज भट्ट ने मंगल नाड ग्राम जला दिया। काश्मीरियों ने दिग्विजय के समय काश्मीर के बाहर, जिस प्रकार दाह एवं लुण्ठन कार्य किया था, वैसा ही काश्मीर में भी हुआ। फतहशाह को सफलता न मिली। त्रस्त एवं त्राण रहित हो गया। दो मास पश्चात् फतह खान पुनः राज्य प्राप्ति की इच्छा से ससैन्य काश्मीर मे प्रवेश किया । शूरपुर पहुँच गया । जहाँगीर तुरन्त बाल राजा को लेकर सेना सहित श्रीनगर से निकला। गुसिका स्थान पर उसने शिविर लगाया। रात्रि में गक्क राजपुत्र शिविर से भाग गया। शू रपुर में जेरक आदि वीरों ने कारागार खोल दिया । बन्दी मुक्त हो गये । सेफडामर आदि विजयेश्वर पहुँचे । सेफडामर फतह खाँ के समीप पहुँच कर, उसके मन्त्रियों में श्रेष्ठ हो गया। मार्गेश जहाँगीर ने सन्धि इच्छा से, फतह खाँ के पास सेख बहाव आदि प्रमुखों को भेजा। एद राजानक, रिग डामर, विद्वान केशव सन्धि के लिए राजपुरी पति को राजा के समक्ष ले गये । इसी बीच मार्गपति ने गदाय रावुत्र द्वारा शृंगार सिह को आश्वासन एवं धन देकर फोड़ लिया। फतह खान के अंतरंगों द्वारा भेद बुद्धि के कारण राजपुरी पति हट गया। सेना संघर्षशील हो गई। गक्क, श्रृंगार सिंह आदि त्रस्त होकर, राजपुरी चले गये। फतह खां असफल होकर, जैसे आया था, लौट गया। मार्गेश पीड़ा से व्याकुल तथा बिरक्त दो मास अपने निवास में पड़ा रहा। मार्गेश को बुद्धि पुनः भ्रमित हो गई। उसने निष्कासित सैयिदों को सहायतार्थ बुलाया, जिन्हें निकाल चुका था फतह खाँ ने जम्म वाट में रहते हुए, खसो का दमन किया। उसने जिस प्रकार सताइस विषयों को काश्मीर में त्रस्त किया था, इसी प्रकार सिन्धूरी लोगों को परेशान किया । मद्र मण्डल के तुरुष्कों को विह्वल कर दिया। उसने ब्रह्म मण्डल जीतकर राजपुरी पति को दे दिया। चैत्रमास मे नायक के निवास स्थान पर फतह खाँ पहुँचा। फतह खाँ शत्रु संहार हेतु कृत संकल्प था। पर्वत शिखर पर स्थित हो गया। इसी समय मार्गपति ने बन्दी जेराक का वध कर दिया। ज्येष्ठ मास में अनिष्ट की आशंका से मार्गेश दुःखी हो गया। वाल नृप मल्ल शिला पर निवास करने लगा। इस समय नगर में महंगाई बढ़ गयी । पचीस दीनार का डेढ़ पल नमक मिलता था।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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