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________________ भूमिका १०५ को पसन्द नही आया। मार्गपति ने जब इस प्रकार की बातें सुनीं, तो वह राजकार्य से विरक्त हो गया। क्रोधित होकर, तटस्थ रहने लगा । जोन राजानक मन्त्रियों मे क्रूर हो गया। वह स्वार्थ सिद्धि के लिए जनता को पीड़ित करने लगा। इसी समय यात्रा के लिए विदेश गये, एद राजनक एवं ठक्कूर अहमद, मार्गेश के दर्शन ब्याज से श्रीनगर में प्रवेश किये। मार्गेश भयभीत हो गया। उसने सेफ डामर सहित विदेशी सैनिकों को बुलाकर सशकित रात्रि व्यतीत किया। दूसरे दिन अहमद ठाकुर ने जोन राजानक का वध कर दिया। सेफ डामर भयभीत होकर, शस्त्र समर्पित कर दिया । जल्लाल ठाकूर राजप्रासाद के प्रांगण में था। द्वारपालों ने अन्तःपुर मे उसका बध कर दिया । मसूद डामर आदि ने नौका पुल काट दिया । जाल डागर में पूर्वकालीन संघर्षके समान सेना शिविर लग गये। आदम खां का पुत्र फतह खाँ था। वह राज्य प्राप्ति की लालसा से काश्मीर में लौकिक ४५६१ वर्ष = सन् १४८५ ई० श्रावण मास में प्रवेश किया। उसका जन्म मद्र मण्डल मे शिवरात्रि के दिन हुआ था। आदम खाँ की मृत्यु माणिक्यदेव के पक्ष से लड़ते, तुरुष्कों द्वारा हुई थी। मातामही के घर उसका लालनपालन हुआ था। कालान्तर में तातार खाँ द्वारा रक्षित, कुछ दिन जालन्धर मे था। सैयिदो के भय से वहिर्गत, जहाँगीर मार्गेश ने पितामह जैनुल आबदीन का राज्य प्राप्त करने के लिये, उसके पास छलपूर्ण पत्र भेजा। तातार खाँ की मृत्यु पर, उसके पुत्र हस्सन खां ने फतह खान का कुछ समय तक पालन-पोषण किया था। फतह खाँ को शृंगारसिंह राजपुरी लाया । राजपुरी पति मागेंश का द्वेषी था। जोन राजानक के मृत्यु पश्चात्, एद राजानक, ठक्कुर दौलत, आदि डामरों ने खान का पक्ष ग्रहण किया। मार्ग रक्षाधिकारी मसूद खाँ वैवाहिक सम्बन्ध से बद्ध होने पर भी, फतह खान का पक्ष ग्रहण किया। देश से जितने लोग निर्वासित थे, सब फतह खान से मिल गये । फतहशाह ने जहाँगीर के पास दूत भेजा। उसमे पत्र का स्मरण दिलाया गया। मार्गेश ने प्रति उत्तर भेजा-काश्मीर भूमि पार्वती है। उसका राजा शिवांशज है। उस पर तपस्या द्वारा राज्य प्राप्त होता है, पराक्रम से नही। मुहम्मद शाह को दूसरों ने राज्य पर बैठाया है । मैं केवल उसकी रक्षा कर रहा हूँ।' जहाँगीर ने अविलम्ब मसूद से रक्षाधिकार लेकर, बहराम नायकादि को दे दिया। दुर्व्यवस्था का लाभ उठाकर, खस, डोम्बादि देश और मडव राज्य में उपद्रव करने लगे। फतह खान से राजा की सेना युद्ध के लिये सन्नद्ध थी। पूर्व कालीन सैयिद विप्लव की अपेक्षा खान विप्लव बड़ा था। अधिक लोग चोरों द्वारा लूट लिए जाते थे। बलवान द्वारा निर्बल सताये जाते थे। देश में अराजकता व्याप्त हो गयी थी। लोग गोधन आदि लेकर, दक्षिण दिशा चले गये । उभय पक्ष को सेना खेरी एवं अर्धवन राष्ट्र में प्रवेश की। सेना को प्रसुप्त जानकर, राज सेना शिविर पर, जेरक आदि ने आक्रमण किया। फतह खाँ विजय से प्रसन्न हो गया। भाग सिंह जिसके कारण फतहखान तुरुष्क देश से आया था, उस स्वपक्षी को किसी ने मार दिया। फतह खां आगे बढ़कर, मल्ल शिला नामक स्थान पर, शिविर लगाया। उसके सैनिकोंने कराल देश में राज सैनिकों को परास्त कर, वहांके निवासियों को लट लिया। मार्गपति ने बाल भूपति को साथ लिया। विजय के लिए प्रस्थान किया। नागरिक सम्पत्तियाँ लूट-पाट भय से नगर से हटाकर ग्रामों मे रख दिये। नगर लूट लिया गया। १४
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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