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________________ धरातल ग्रन्थ कथा: दशक बीता। भाष्यों की कक्षा शेष हयी। आठ खण्डों की गाथा शेष हुयी। पृष्ठों की कहानी शेष हुयी। दूसरों की गाथा गाकर । दूसरों की कहानी जगाकर। अपनी कहानी बन्द कर । दूसरों की कीर्ति गुनगुनाकर । अपनी शेष कर । दूसरों का यश जीवित कर । अपना शेष कर । लेखनी शान्त हुयी । परिश्रान्त उगलियोंने विश्रान्ति ली । ग्रन्थों की श्रृंखला विदा हुयी । कागजों का रंगना रुका । अपना भार उतरा । मन हलका हुआ। बीतता-बीत गया। रह गया, उनका साक्षी बन कर । दुनिया रूठी । राजनीति रूठी । लक्ष्मी रूठी । पद के साथी रूठे। उनकी रूठी लहरों में तैरता गया । डूबता गया । उतराता गया। खिंचता गया । भारती की ओर । लगा एकाकी किनारे । स्मृतियों ने झकझोरा। आकर्षणों ने झकझोरा। मोह ने झकझोरा। सबने झकझोरा। जिसने पाया। उसने झकझोरा । प्राक्तन संस्कार मुसकुराया। हाथ फैला न सका। जवान खोल न सका । लड़खड़ा न सका । गिर न सका । दुनिया हँसी । समाज हँसा । साथी हँसे । मैं खतम हो गया । आँखें खुलीं । सहमती हुई। छिपती हुई। कतराती हुई। लेकिन देखा। खतम हुये, हाथ फैलानेवाले । खतम हये, जबान खोलनेवाले। खतम हये. बिकनेवाले। खतम हुये, खरीदनेवाले । खतम हये, उठनेवाले । खतम हुये, गिरानेवाले । यह खतम, खात्मे की ओर न ले जा सका। सूरज छिपता है। अन्धेरा होता है। बिजली बिगड़ती है। अन्धेरा होता है। दीपक बुझता है। अन्धेरा होता है। दुनिया में अन्धेरा होता है। बाहर अन्धेरा होता है। भीतर अन्धेरा होता है। लेकिन अन्धे को न अंधेरा है, न उजाला। दो आँखें खुली रहती हैं। देखती हैं। चमकती हैं। मन्द पवन बहता है। धूल उड़ती है । आँखें बन्द होती हैं । पद, लोलुप ग्रहण लगता है। खुली आँखें नही देखती। स्पर्धा ज्वाला लपलपाती है । खुली आँखें फिर जाती हैं। उज्ज्वल हीरा भस्म होता है। चमकता सोना भस्म होता है । यौवन भस्म होता है। सुन्दर काया भस्म होती है। भस्म बन जाता है, त्रिनेत्र का त्रिपुण्ड । उद्घोषित करता-सत्व, रज, तम; उत्पत्ति, स्थिति, संहार; ब्रह्मा, विष्णु, महेश; द्रष्टा, दृश्य, दर्शन; इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना; ऋग, यजु, शाम; धर्म, अर्थ, काम; मन, वाणी, कर्म; जाग्रत, स्वप्न, शुसुप्ति; अ, ऊ, म; भूत, वर्तमान, भविष्य; प्रातः, मध्याह्न, सायं; बात, पित्त, कफ; हड़, बहेड़ा, आँवला; गंगा, यमुना, सरस्वती; स्वर्ग, मर्त्य, पाताल; क्षय, स्थान, वृद्धि; क्रोध, मोह, लोभ; बुद्ध, संघ, धर्म; पिता, पुत्र, पवित्रात्मा का रहस्य । तीसरी आँख है। देखती है। एक आँख से। दो से हटकर । द्वैध से हटकर । द्वैत से कटकर ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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