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________________ ( ७६ ) किए तेरह इकसटियां भाग प्रमाण सूर्य सूर्यविषै अंतराल जानना | बहुरि वेदी निकट सूर्यत्रिका अंतराल ताँतै आधा जाननां । वहाँ विषमक कैसे आधा करिए तातै राशिमेंस्यों एक घटाइ ९९९९८ ताका आधा करिए तब गुणचास हजार नवसै निन्याणवै योनन भए । बहुरि अवशेष एककौं आघा स्थापि पूर्वोक्त अवशेष तरह इकसठियां - २ भाग थे ते राशिक अश थे तातें तिनका भी आधा स्थापिए १३ इन ६१।२ दोऊनिकों समच्छेद विधान करि मिलाइ दोड़कर अपवर्तन करिए तव सैंतीसका इकसठवां भाग प्रमाण अवशेष आया । ऐसें ही धातकी ६१ खण्ड कालोदक समुद्र पुष्करार्ध द्वीप तिनवि तिष्ठते सूर्य सूर्यनिके वीचि अंतरा अर वेदी सूर्यनिविषै अंतराल ल्यावनां । भावार्थ -- लवण समुद्रादिविषै च्यारि आदि सूर्य हैं तिन विषै एक-एक परिधिविषै दोय दोय सूर्य जाननें तहां लवण समुद्र विष अभ्यंतर वेदीतें गुणचासहजार नवसै निन्याण योजन अर सैतीस इकसठियाँ भाग परै जाइ परिधि है वहां सूर्यका विमान हैं । सो अठतालीस इकसठ भाग प्रमाण है । बहुरि तातें पर निन्यानवे हजार नवसै निन्यानवे योजन अर तेरह इकसठिवां भाग परेँ जाइ परिधि है तहां सूर्यविमान है सो अठतालीस इकसठिवां भाग प्रमाण हैं । बहुरि तातें परेँ गुणचास हजार नवसे निन्याणवै योजन भर सैंतीस इकसठवां भाग परेँ जाइ लवण समुद्रकी बाह्यवेदी है । ऐसें इनकौं मिलाएं दोय लाख योजन प्रमाण लवण समुद्रका व्यास हो है । याही प्रकार धातुकी खण्ड विषै च्यारि लाख योजन व्यास है । तामैं छह जायगा एक एक परिधिविषै दोय दोय सूर्य हैं । तिनि छौं परिधिनिके बीचि सूर्य सूर्यविपैं पाँचअंतराल है । तिनका प्रमाणः स्यावनी । बहुरि तिस प्रमाणतें आधा आधा •
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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