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________________ ( ६४ ) णीवर - द्वीपदिषै धन जाननां । कैसे सो कहिए है । पूर्व आदि दृर्णां हां आदि वलय विषै है सो मुख १४४२|२| जाननां । बहुरि "पदहंतमुखमादिधनं " इससूत्रकरि याकों इहां वलय चौसठ है ता गच्छका प्रमाण चौसठ तीहकरि गुणिए । १४४ । २ । २ । ६४ । बहुरि - " व्येक पदार्धनचयगुणो गच्छः उत्तरधनं " इस सूत्र करि एक घाटि ६३ को वलय वलय प्रति बघती गच्छ प्रमाण तरेसठ ६३ ताका आधा २ प्रमाणरूप चय च्यारि करि गुणिए ६३ । ४ बहुरि याकौं गच्छ चौसठि करि " गुणिए ६३ - ।४। ६४ बहुरि दोयके भागहार करि गुणिए ६३ । ४ बहुरि ६३ २ या चौसठ कर गुणिए ४ । ६४ बहुरि दोय के भागहार २ करि च्यारिका अपवर्तनकरि दूवाकों चौसठिके आगे स्थापिए ६४ ॥६४ यामैं पूर्वोक्त दुणा ऋण मिलाइए सो दुगुणां चौसठि मिलाइए ६४/२ सो. दुगुणा चौसठिका गुणाकार समान देखि गुण्यविषै एक मिलाइये ६४ । ६४ । २ । बहुरि सर्वत्र चौसठि गुणां एकसौ छिहतर करनी तातें जिह- भांति बत्तीस रहे तैसे संभेदन कर चौसठकी नायगा तौ बत्तीस करिए भर दोय आगें धरिए ३२ । २ । ६४ । बहुरि दोय दूवानिकों परस्पर गुणि च्यारिका अंक लिखिए ३२ । ६४ । ४ ऐसे उत्तर धन होइ । बहुरि आदि धन १४४ । ६ । ४ । ४ । अर - उत्तर धनं दोऊनिकौं मिलाएं चौसठ गुणा एक सौ छडतरिका चौगुणा उमबंधन हो ऐसे ही एक एक द्वीप वा समुद्रविषै चौगुणा चौगुगा तो धन जानना । अर नो उत्तर घनविषै ऋण मिलाय था सो पुष्करवर समुद्रविषै तौ ऋण आठकी कृति जो चौसठ विह प्रमाण जाननां । भर • क्रपरि दूणा परि दुणा जाननां । ऐसे धनविषै आदि तौं चौसठि गुणा
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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