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________________ मादितै आदि दणादणा क्रमः कहे थे नाते पुष्करार्घ द्वीपका भादि वलयविर्षे एक सौ चवालीस थे तिनसे दूणे पुष्कर समुद्रका आदि वलयविखे हैं । १४४ १२। सो इहां मुख जाननां । बहुरि "पदहतमुखमादिधनं" इस सूत्र करि गच्छकरिगुण्यां हुवा मुखका प्रमाण सो मादि धन है। सो इहां बत्तीस वलय हैं । तातै गच्छका प्रमाण वत्तीस तिहकरि मुखको गुण जो मुखवि दोयका गुणकार था ताकौं वत्तीस करि गुणि भर एकसों चवालीसके आगें चौसठीका कुणकार स्थापिएं १४१ । ६४ । इतना तो आदिधन जानना बहुरि " व्येकपदानचयगुणोगच्छउत्तरधनं ॥ इस सूत्रकरि एक घाटि गच्छका बाधा करि चयको गुणि तीहकरि गच्छकौं गुणें उत्तर धन हो है। सो इहां एक घाटि गच्छ इकतीस ३१ ताका आधा करि चयका प्रमाण एक एक वलय वि च्यारि च्यारि बधती है, तात च्यारि च्यारिकरि गुणिए ३११४ बहुरि इनकी गच्छ वतीस करि गुणिए ३११४।३२ बहुरि 'मागहारका दूवा करि गुणकारका चौका अपवर्तन किए दोय होय तीहकरि बत्तीसका गुणकार गुणें चौसठि होइ । ऐसें इकतीसकौं चौंसठि गुणां करिए.३१६४ इतना उत्तरधन हुवा । बहुरि इस उत्तर धनविर्षे चौसठिका ऋण मिलावनां सो उत्तर धनविर्षे चौपठिका गुणकार नानि गुण्यवि एक मिलाया तब बत्तीसकौं चौसाठि गुणां करिए । इतना उत्तर धन भया ३२॥६४ .. इहां ऋणका मिलावना बहुरि याहीको घटावना सो सुगम गणित आवनेके अर्थि करिएं हैं बहुरियादिधन पर उत्तर धनविर्षे गुण्य वत्तीस इनको मिलाइ एक सौ छिहत्तरि गुण्य किया पर चौसाठि गुणकार किया । ऐसे चौसाठि गुणां एक सौ छिहत्तरि १७६१६४ प्रधाण पुष्कर समुद्रका उभय धन सो ज्योतिधिनिका प्रमाण ल्यानके अर्थी .जो गच्छ कहा था गका प्रभव कहिए आदि जानना । बहुरि यात चौगुणां. वार
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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