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________________ (५८) - -. अर्थ- लवण समुद्रविर्षे दोय अर्ध छेद पड़े है । केस ! राजको आधा आधा करते जहां दोय लाखका अर्धछेद करिए तब सतरहवार भय एक योजन उवरै । बहुरि एक योजनके अंगुल सात लाख अरसाठ हजार तिनके अर्द्ध च्छेद करिए तब उगणीसबार भए एक अगुल उर्वर । बहुरि राजका अर्घछद किएं प्रथम अर्धछेद मेरुकै मध्य पड्या सो ऐसे सतरह गणीस एक अर्धछेद मिलि संख्यात अर्धच्छेद भए । बहुरि एक अंगुरु अवन्या था सो वह सूच्यंगुल है। सो सूच्यंगुलके अर्धछेद इतने छे छे । इहां पल्यके अर्ध छेदनिका वर्ग प्रमाण सूच्यंगुलके अर्घ छेद नानने । इनकों मिलाएं संख्यात अधिक सूच्यंगुलके मर्घ छेद प्रमाण एक लाख योजनके अर्धछेद भए तिनकी सहनानी ऐसी इहां संख्यात अधिककी सहनानी जारि ऐसे १ जाननी । इतने अर्धछेदनिविर्षे अपनयन त्रैगशिक विधिकरि घटाए जो प्रमाण मा तितनी द्वीपसमुद्रनिकी संख्या जाननी अपनयन त्रैगशिक विधि कैसे सो कहे है । राजूका अर्धछेद इतने कहे , तहाँ पल्य के अर्ध छेदनिका असंख्यतवां भाग प्रमाण तौ गुण्य जानना छ वहुरि पत्यके अर्ध छेदनिका वर्ग तिगुणा सो गुणकार जानना छे छे ३ तहां जो इतने छे छे ३ : गुणकारकों देखि करि गुणकार प्रमाण राशि घटानेकों गुण्यविर्षे एक घटाइए तो इतना . १ घटावनेके अर्थि गुण्यमें कितना घटाइए ऐसे त्रैराशिक करिए तहां प्रमाण राशि ऐमा छे छे ३ फलराशि १ इच्छा राशि ऐसा १ छे छे फल करि इच्छाको गुणि प्रमाणका भाग दीजिए तहां भाज्य राशि अर भागहार राशि दोऊनिविर्षे पत्य मर्ष छेदनिका र्ग ऐसा छे.छ. तिनकों समान देखि भागहारविषः उवर्या. तिनका
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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