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________________ (५७) - - - - स२२ २० आदिका प्रमाण एक प्रदेश घटाइए अर एक पाटि गुणकारका प्रमाण एकताका भाग दीजिए तब एक प्रदेश घाटि ड्यौढ लाख योजन प्रमाण भए । सो संख्यात सहित सूच्यंगुलका अर्द्धछेद प्रमाण द्वीपसमुन्द्र भए । भंतविर्षे अभ्यंतर वेदी इतनै परै जाइ राजू पडै है । बहुरि बाधा ७५००० ७५०.. ७५०००००० आधाकी अर्थ संदृष्टि ऐसी-- २ २५ २१ इहां संदृष्टिविर्षे पहिलै तौ पिचहत्तर हजारते १२ २२ लगाइ आधे आधे किए आधा करनेकों दोयका भागहार जानना, ताके भाषा करनेकों तिस भागहारको दोयका गुणकार जाननां । बहुरि मध्य भेदनिके ग्रहणनिमित्त वींचि बिंदी जाननी । बहुरि मागे सुच्यंगुलते लगाय भाधा आधा क्रम जाननां । बहुरि मध्य भेदनिके ग्रहणनिमित्त बीचि विदी जाननी । बहुरि आगे सूच्यंगुलते लगाय आधा आधा क्रग जानना । सूच्यंगुलकी सहनानी दोयका अंक जाननां । बहुरि मध्य भेदनिके ग्रहण निमित व चि विदी जाननी । बहुरि भागै च्यारि दोय एक प्रदेश जानने ऐसै आधा आधाका प्रमाण जाननां । ऐसे पूर्व पूर्व प्रमाणते उतर उत्तर प्रमाण अधिक करनां । बहुरि अंक संदृष्टिकर जैसे चौसठितें लगाय एक पर्यंत आधा आधा करिये इहां जाननी । ६४ । ३२ । १६ । ८।४ । २ । १ । ऐमैं ड्योढ लाख योजनका क्रम करि लवणसमुद्र पर्यंत मसंख्यात द्वीप समुद्रनिकों जाईकरि ॥३५७॥ कहा सो कहे हैं। . लवणे दु.पडिदेकं जंबूए देज्जमादिमा पंच ।। दीउदही मेरुसला पयदुवजोगी ण छज्जेदे ॥ ३५८ ॥ लवणे द्विः पतितः एक जवौ देहि आदिमाः पंच ॥ - : द्वीपोदधयः मेरुशलाः प्रकृतोपयोगीनः न पट् चैते ॥३५८॥ • ५७५९
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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