SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४४) - आगै तिन विमाननिका व्यास अर वाहुल्य दोय गाथानिकरि को हैं जोयणमेकहिकए छप्पण्णठदाल चंदरविवासं ॥ सुकगुरिदरतियाणं कोसं किंचूणकोस कोसद्धं ॥ ३३७॥ योजनं एकपष्टिकते पट्पंचाशदष्टचत्वारिंशत् चंद्ररविव्यासौ ॥ शुक्रगुर्वितरत्रयाणां क्रोशः किंचिदून क्रोशः क्रोशार्धम् ॥ ३३७ अर्थ-एक योननका इकसठि भाग- करिए तहाँ छप्पन भाग प्रमाण तो चंद्रमाके विमानका व्यास हैं । बहुरि शुक्रका एक कोश, बृहस्पतिका किंचित् ऊन एक कोश, इतर तीन बुध मंगल शनैश्चर इनका भाधकोश प्रमाण विमानण्यास जानना ॥ ३३७॥ कोसस्स तुरियमत्ररंतुरिय हियकमेण जाव कोसोति ॥ ताराणं रिक्खाणं कोसं बहुलं तु वासद्धं ॥ ३३८ ॥ क्रोशस्य तुरीयमवरंतुर्याधिक क्रमेण यावत् क्रोश इति ॥ ताराणां ऋक्षाणां क्रोशं बाहुल्यं तु व्यासार्धम् ॥ ३३८ ।। अर्थ-तारानिका विमाननिका जघन्य व्यास कोशका चौथा भाग प्रमाण है । वहुरि चौथाई अधिक एक कोश पर्यंत जाननां तहां माधकोश पाणैकोश प्रमाण-मध्यम व्यास जाननां । एक कोश प्रमाण उत्कृष्ट व्यास. जाननां-बहुरि शेष.जे. नक्षत्र तिनका विमानव्यास- एककोश प्रमाण जानना । बहिरि सर्वविमाननिका व हुल्य कहिए मोटाईका प्रमाण सो अपने अपने व्यासतै माधा जानना ।। ३३८ ॥ ___“आगें राहु केतु ग्रहनिका विमान व्यास वा तिनका कार्य वा ति: नका भवस्थानकों दोय गाथानिकरि कहै हैं: राहु अरिहविमाणा किंचूर्ण अधोगता ॥ . छम्मासे पव्वंते चंदरवीदादयन्ति कमे ॥ ३३९ ॥ राव्हरिष्टंविमानौ किंचिदूंनौं योजनः अधोगतारौं । षण्मासे पर्वान्ते चंद्ररवीछादयतः क्रमेण ॥ ३३९।।
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy