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________________ भूमिका. यह जैनज्योतिष नामका थ जैनसमाजमें प्रसिद्ध करनेका हेतु ऐसा है कि अन्यमतियोंके ज्योतिपथ-सूर्यसिद्धांत, सिद्धान्तशिरोमणि ( भास्कराचार्य बनाये ), ग्रहलाघव [गणेश दैवज्ञका बनाया हुवा ], मुहर्तमार्तण्ड, मुहूर्तचितामणि, जातकामरण, जातकालंकार इत्यादि ग्रंथ मन्यमति वैदफे माधारसे बनाये हुए हैं। वेदके बारेमें श्री आदिनाथ पुराणके रचयिता श्री० जिनसेनाचार्य पर्व ३९ में कहते हैं। "श्रोतान्यपि हि वाक्यानि संमतानि क्रियाविधो॥ न विचारसहिष्णूनि दुःप्रणीतानि तानि वै ॥१०॥ अर्थात्:-धर्मक्रियाओंफे करनेमें जो वेदोंके वाक्य माने गये हैं वे भी विचार करनेपर कुछ अच्छे नहीं नान पडते, अवश्य ही वे वाक्य दुष्ट लोगोंके बनाये हुए हैं ॥१०॥" इस परसे सिद्ध होता है कि-दुष्ट लोगोंके बनाये हुए वेद व वेदोंके माधारसे रचे हुवं. सिद्धान्तशिरोमणि गोलाध्यायादि ग्रंथोंपर विश्वास रखकर रुई आलसी इत्यादि पदार्थोकी तेजी मंदी समझकर वेपार करते हैं, उस वेपारसे हजारों जैनियोंने नुकसान पाया है। . केईने तो अपना घरदार खो दिया है और नादार बन गये हैं । केईने तो कर्जदारीके भयसे आत्महत्या करलिई है। ऐसे बहोत संकटमें परे हुये देखे जाते हैं । सो ये अन्यमति मिथ्यात्वी ग्रंथोंपर भरवसा रखना ! अथवा जैनज्योतिष ग्रंथोंपर रखना ? ऐसा विचार उत्पन्न
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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