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________________ प्रथम विपुपविर्षे तिथिका तृतीया है । यहुभी विषम तिथि है तातै इहां भी रुष्ण पक्ष ही जाननां । बहुरि दूसरा उदाहरण-इष्ट भावृत्ति दशमी तामै एक घटाए नव ताकौं छह गुणा किए चौवन तिनको दोय नायगा स्थापि एक जायगा एक और मिलाएं पचावन होई ताकौं पंद्रहका भाग दिएं अवशेष दश रहे सोई दशवीं भावृत्तिविष दशमी तिथि है। इहां शुक्ल पक्ष जाननां । बहुरि दूसरी जायगा तीन और मिलाएं सत्तावन होइ ताको पंद्रहका भाग दिएं अवशेष बारह रहे सोई दशवां विषुपविषै तिथि द्वादशी है । यह भी सम तिथि हैं । तातै इहां भी शुक्ल पक्ष नाननां । ऐसेही अन्य आवृत्ति वा विपुपविष साधन करना ॥४२८॥ ___आगें विपुपवि नक्षत्रनिका वा सर्व तिथि ल्यावनैका विधान आउहिलद्धरिक्खं दहजुद छहदसमगेणूणम् ॥ . इपुपे रिक्खा पण्णरगुणपव्वाजुदतिही दिवसा ।। ४२९ ।। आवृत्तिलब्धऋक्षं दशयुतं पष्ठाटदशमके एकोनं ॥ विपुवे ऋक्षाणि पंचदशगुणपर्वयुततिथयः दिवसानि ॥४२९ अर्थः-आवृत्तिविर्षे जो नक्षत्र पाया ताका मागला नक्षत्रसौं लगाय जो दशबा नक्षत्र होइ सो तीह आवृत्ति संबंधी नक्षत्र जाननां । तहां छठा आठवां दशवां विषुपविष एक घटावनां जो नवमां ही नक्षत्र होइ सो तीह विषुपविष जाननां । उदाहरण-दूसरी भावृत्ति विर्षे हस्त नक्षत्र है । तात मागें चित्रात लगाय दशां नक्षत्र धनिष्ठा है। सोई दूसरा विषुपवि. नक्षन जाननां । बहुरि दूसरा उदाहरण छठी आवृत्तिविष पुष्य नक्षत्र है। तातै पगिला आश्लेषात लगाय नवमा नक्षत्र रोहिणी है सोई छटा विपुपविर्षे नक्षत्र जानना इहां छटा भाववा
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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