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________________ (१४०) विषुप पहला तार्को दुर्गां किए दोय तामैं एक घटाएं अबशेष एक ताक छह गुणां किएं छइसो प्रथम विपुपविषै युग आरंभतें व्यतीत पर्वनिका प्रमाण छह है । बहुरि तीह पूर्व प्रमाणका आधा तीनसो प्रथम विपुपविषै तिथि तृतीया है । दूसरा उदाहरण - इष्ट विपुप दशवां ताक दूणा किएं वीस तामें एक घटाएं उगणीस ताक छह गुणा किएं एक सौ चौदह सो पर्व प्रमाण ताका आधा सत्तावन ताक पंद्रहका भाग भाग दिएं तीन पाए सा पर्व संख्याविषै मिलाएं अंत विपुपविषै एकसौ सत्तरह तौ पर्वनिका प्रमाण है । अर अवशेष बारह रहे सो तिथि द्वादशी । ऐसें अन्य विपुपनिविषै भी जाननां ॥ ४२७ ॥ आगैं आवृत्ति अर विपुपविषै तिथि संख्याको कहें हैं, --- वेगपद छग्गुणं इगितिजुद आउहि सुपतिहिसंखा || विसमतिहीए कि हो समतिथिमाणो हवे सुक्को ॥ ४२८ ॥ व्येकपदं पड्गुणं एकत्रियुतं आवृत्तिविपुपतिथिसंख्या ॥ विपमतिथौ कृष्णः समतिथिमानो भवेत् शुक्लः ॥ ४२८ ॥ अर्थः - इष्ट भूतं जेथवीं आवृत्ति होइ तिस आवृत्ति स्थानक - मैस्यों एक घठाइए अवशेष - छह गुणाकरि दोय जायगा स्थापिए तहां एक जायगा एक और मिलाइए एक जायगा तीन और मिला क्रमतें आवृत्ति पर विपुपविषै तिथिको संख्या हो है तिनिविषै जो एक तृतीया पंचमी आदि विषम गणनारूप तिथि होइ तौ तहाँ कृष्ण पक्ष है । बहुरि द्वितीया चतुर्थी षष्ठी आदि समतिथि हैं तो वहां शुक्ल पक्ष है । उदाहरण इष्ट आवृत्ति प्रथम तामैं एक घटाएं शून्य ताकौं छह गुणा किएं भी शून्य होइ ताकौं दोय जायगा स्थापि तातैं एक जायगा एक जोड़ें एक होइ सो प्रथम आवृत्ति विषै तिथि एक है सो यह विषम तिथि है तातें इहां कृष्ण पक्ष जाननां । बहुरि दूसरी जायगा तीन जोडै तीन होइ सो प्रमथ् यावृत्ति संबंधी
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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