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________________ ( १२०. ) ! अभिजित नक्षत्र अर चंद्रमाका आसन्न मुहूर्त कहिए । सो asafa अधिक खण्डनिके पीछे छोड़ने में एक एक मुहूर्त होड़ तो उसे तीस अभिजित खण्डनिके पीछे छोड़ने में केते मुहूर्त होइ । ऐसें त्रैराशिक करि अधिक प्रमाण सतसठिकां भाग अपने छसे तीस खण्डनिकों दिएं लव्धराशि नव मुहूर्त सताईसका सतसठिवां भाग मात्र अभिजित भर चंद्रमाका आसन्न मुहूर्तका प्रमाण आया । 1 इतने काल चंद्रमा अभिजित संबंधी गगनखण्डनिके निकटवर्ती रहे है । तातें आसन्न मुहूत कहिए । बहुरि इस आसन्न मुहूर्त काल ही विषै नक्षत्रभुक्ति कहिए । यावत्काल चंद्रमा अभिनित संबंधी गगनखण्ड निके समीपवर्ती रहे तावत्काल चंद्रमाकै अभिजित नक्षत्रका भोगवनां कहिए । बहुरि इसही कालविषै योग कहिए यावत्काल जंद्रमा अर अभिजित संबंधी गगनखण्डनिका संयोग रहें तावत्काल चंद्रमा अर अभिजितका योग कहिए । बहुरि याही प्रकार अधिक प्रमाण सतसठिका भाग जघन्य मध्यम उत्कृष्ट नक्षत्रनिके क्रमतें एक हजार पांच दोय हजार दस तीन हजार पंद्रह गगनखण्डनिकों दिएं नघन्य नक्षत्रनिका पंद्रह मुहूर्त मध्य नक्षत्रनिका तीस मुहूर्त उत्कृष्टनिका पैंतालीस मुहूर्त मात्र आसनमुहूर्त हो । - .: . बहुरि तीस मुहूर्तका एक दिन होइ तौ पंद्रह आदि मुहूर्तनिका ता हो ऐसें कहि पंद्रहका अपवर्तन किएं जघन्य नक्षत्रनिका आधा दिन मध्यम नक्षत्रनिका एक दिन उत्कृष्ट नक्षत्रनिका ड्योढ दिन प्रमाण चंद्रमाको नक्षत्रमुक्ति काल हो है । बहुरि याही प्रकार अधिक प्रमाण पांचका भाग अपने अपने नक्षत्र संबंधी गगनखण्डनिकों दिएं • दिनादिक किए सूर्य के अभिजितका च्यारि दिन छह मुहूर्त जघन्य नक्षत्र - का छह दिन इस मुहूर्त मध्यम नक्षत्रका तेरह दिन बारह मुहूर्त उत्कृष्ट नक्षत्रका वीस दिन तीन मुहूर्त प्रमाण नक्षत्र भुक्तिको काल ज्ञाननां ॥ ४०४ ॥
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
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