SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११६ ) गगन खण्ड हैं । बहुरि इतने इतने ही दूसरा चंद्रमा संबंधी है । यहां नक्षत्रनिके जघन्य मध्य उत्कृष्टपना गगनखण्ड निका. थोडा बहुत अति बहुतकी अपेक्षा कला है स्वरूपादिक अपेक्षा नाहीं कहा हैं ||३९८ || आगे तिन जघन्य मध्यम उत्कृष्ट नक्षत्रनिकों दोय गाथानिकरि कहैं हैं --- सदभिस भरणी अद्दा सादी असिलेस्स जेट मचत्वरा || रोहिणि विसाह पुणव्वसु तिउत्तरा मज्झिमा सेसा ॥ ३९९ ॥ शतभिषा भरणी आर्द्रा स्वातिः आश्लेषा ज्येष्ठा अवराणि चराणि रोहणी विशाखा पुनर्वसुः ध्युत्तराः मध्यमा शेषाः || ३९९ ॥ अर्थः-- शतभिषक कहिये शतमिपा १, भरणी २, आर्द्रा ३, स्वाति ४, आइलेपा ५, ज्येष्ठा ६, ए छह जघन्य नक्षत्र हैं । बहुरि रोहिणी १, विशाखा २, पुनर्वसु ३, उत्तरा कहिए उत्तरा फाल्गुनी ४ उत्तराषाढा ५, उत्तरा भाद्रपदा ६ ये छइ उत्कृष्ट नक्षत्र हैं । बहुरि अवशेष नक्षत्र मध्यम हैं ॥ ३९९ ॥ ते अवशेष कौन सो कहे हैं । - अस्सिणि कित्तिय मिसिर पुरुस महा हत्थ चित्त अणुहारा ॥ पुव्वतिय मूलसवणा सघणिहा रेवदी य मज्झिमया ॥ ४०० ॥ अश्विनी कृत्तिका मृगशीर्षा पुष्यः मघा हस्तः चित्रा अनुराधा ॥ पूर्वत्रिका मूलं श्रवणे सघनिष्ठा रेवती च मध्यमाः ॥ ४०० ॥ अर्थ :- अश्विनी १, कृतिका २, मृगशीर्षा ३, पुष्य ४, मघां ५, हस्व ६, चित्रा ७, अनुराधा ८, पूर्वत्रिका कहिए पूर्वा फाल्गुनी ९, पूर्वाषाढा १०, पूर्वाभद्रपदा ११, मूल १२, श्रवण १३, धनिष्ठा १४, रेवती १५ ए पंद्रह मध्यम नक्षत्र हैं ।। ४०० ॥
SR No.010018
Book TitleJain Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankar P Randive
PublisherHirachand Nemchand Doshi Solapur
Publication Year1931
Total Pages175
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy