SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनेन्द्र-शब्दानुशासन और उसके खिलपाठ ४६ लिङ्गानुशासन-आचार्य देवनन्दी प्रोक्त लिङ्गानुशासनका कोई ग्रन्थ हमारी दृष्टि में नहीं आया, परन्तु जैनेन्द्र लिङ्गानुशासन था अवश्य । इसमें निम्न प्रमाण हैं १-वामन अपने लिङ्गानुशासनके अन्त में प्राचीन आचार्य प्रोक्त लिङ्गानुशासनोंका निर्देश करता हुआ लिखता है-व्याडिप्रणीतमथ वाररुचं सचान्द्र जैनेन्द्र लक्षणगतं विविधं तथाऽन्यत् । लिङ्गस्य लक्ष्म"..... ॥३०॥ इसमें जैनेन्द्र लिङ्गानुशासनका उल्लेख स्पष्ट है। २-अभयनन्दी अपनी महावृत्ति २४/१०८ में लिखता है.--गोमयकषायकार्षापणकुतपकवाटशंखादिपाठादवगमः कर्तव्यः । अर्थात् गोमय आदि शब्द जिनमें उभयलिंगता देखी जाती है, उनका ज्ञान पाटसे कर लेना चाहिए। यहाँ पाठसे अभिप्राय लिङ्गानुशासनका ही है, क्योंकि 'पुंसि चार्धर्चाः' [१।४।१०८] सूत्र पर पाणिनिके समान जैनेन्द्र में कोई गण नहीं है। अतः इनका पाठ लिङ्गानुशासनमैं ही सम्भव हो सकता है। ३. आचार्य हेमचन्द्रने अपने लिङ्गानुशासनके स्वोपज्ञ विवरणमैं नन्दीके नामसे एक पाठ उद्धृत किया है-"भ्रामरं तु भवेच्छुक्लं क्षौद्रं तु कपिलं भवेत्" इति नन्दी। पृष्ठ० ८५ पंक्ति २५ । ___ हमारे विचारमें यह पाठ देवनन्दीके लिङ्गानुशासनका है और पूर्वोल्लिखित नियमके अनुसार यहाँ नन्दी शब्दसे देवनन्दीका ग्रहण है । हर्षवर्धनीय लिङ्गानुशासनके सम्पादक पं० वेङ्कट राम शर्माने अपनी निवेदनामें २३ प्राचीन लिङ्गानुशासनोंका उल्लेख किया है। उसमें संख्या १८ पर 'नन्दिकृत लिङ्गानुशासन' का निर्देश है। इससे भी हमारे विचारकी पुष्टि होती है कि प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा नन्दी-नामसे स्मृत श्राचार्य देवनन्दी ही है। लिङ्गानुशासन छन्दोबद्ध था-हैमलिङ्गानुशासन विवरणमें उदधृत पूर्व वचनसे प्रतीत होता है कि देवनन्दी प्रोक्त लिङ्गानुशासन छन्दोबद्ध था। लिङ्गानुशासन-व्याख्या-श्राचार्य देवनन्दीने अपने लिङ्गानुशासनपर कोई व्याख्या भी लिखी थी। हेमचन्द्र अपने लिङ्ग विवरणमें लिखता है-"नन्दिनः गुणवृत्तस्त्वाश्रयलिङ्गता स्वादुरोदनः, स्वाद्वी पेया, स्वादु पयः ।' प्राचार्य हेमचन्द्रने यह पङ्क्ति अथवा अभिप्राय निश्चय ही जैनेन्द्रलिङ्गानुशासनकी व्याख्यासे लिया होगा। व्याकरणके अन्य ग्रन्थ पूर्वलिखित धातुपाठ, गणापाठ, उणादि और लिङ्गानुशासन इन ४ खिलोंके अतिरिक्त जैनेन्द्र शब्दानुशासनसे संबन्ध रखनेवाले न्यूनातिन्यून तीन ग्रन्थ और थे। उनके नाम हैं-वार्तिकपाठ, परिभाषा पाठ, शिक्षा। वार्तिक पाठ-अभयनन्दीकी महावृत्तिमें जैनेन्द्र शब्दानुशासनसे संबन्ध रखनेवाले बहुतसे वार्तिक व्याख्यात हैं। ये वार्तिक किसके हैं, यह अज्ञात है। इसी प्रकार महावृत्तिमें समस्त वार्तिक व्याख्यात हैं अथवा उसमें काशिकाके समान अधिक उपयोगी वार्तिकोंका ही सन्निवेश है, यह भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि जैनेन्द्र वार्तिक पाठका स्वतन्त्र ग्रन्थ अभी तक प्रकाश में नहीं आया। आर्य श्रुतकीर्तिने अपनी पञ्चवस्तुप्रक्रियाके अन्तमें जैनेन्द्रशब्दानुशासनपर रचे गये किसी भाष्य ग्रन्थ की सूचना दी है। यह भाष्य इस समय अनुपलब्ध है। स्वयं प्राचार्य पूज्यपादने भी अपने शब्दानुशासनपर एक न्यास लिखा था, वह भी अप्राप्य है। अतः जैनेन्द्रसे संबद्ध वार्तिक पाठकी रचना किसने की यह अज्ञात है। वार्तिक अभयनन्दी विरचित नहीं हैं--महावृत्तिमैं व्याख्यात वार्तिक अभयनन्दी विरचित नहीं हैं, क्योंकि उसमें स्थान-स्थानपर पातञ्जल महाभाष्यके समान वार्तिकोंका निराकरण करके सूत्र-द्वारा कार्यका १. अग्रेज़ीमें पृष्ट ११ पर, संस्कृतमें पृष्ठ ३४ पर । For Private And Personal Use Only
SR No.010016
Book TitleJainendra Mahavrutti
Original Sutra AuthorDevnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj
AuthorShambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages568
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy