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________________ निकल जायगी, अर्थात् अहिंसा आदि की पूर्वोक्त दिव्य भावनाएँ मनुष्य के मानस में नहीं रह जाएँगी, उस समय संसार की क्या दशा होगी ? उस समय मनुष्य, मनुष्य न होकर विकराल पिशाच के रूप में होगा ! धरती नरक बन जाएगी ! आज संसार में जो भी थोड़ी-बहुत शान्ति नज़र आती है, वह सब अहिंसा, दया, क्षमा आदि का ही प्रताप है, अर्थात् धर्म का ही प्रताप है। प्रश्न हो सकता है कि यदि धर्म के विना संसार की सारी व्यवस्था छिन्नभिन्न हो सकती है और शान्ति के नष्ट हो जाने की आशंका है तो लोग धर्म का विरोध क्यों करते हैं ? इसका उत्तर यही दिया जा सकता है कि धर्म के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान न होना ही धर्मविरोध का कारण है। धर्म निराधार रूढ़ियों का समूह नहीं है, धर्म नाना प्रकार की लोकमृढ़ताओं में नहीं है, बल्कि अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है, यह बात अगर दुनिया समझ जाय तो धर्म के विरोध की कोई गुंजाइश ही न रह जाय । किन्तु सच्चे स्वरूप को समझाने वाले विद्वान् महात्मा अाज विरले हैं। उनकी आवाज, ढोंगियों और धूर्ती की, जो धर्म के नाम पर कमाई करना चाहते हैं, मौज उड़ा रहे हैं और लोगों को गलत राह पर ले जा रहे हैं, आवाज में विलीन हो जाती है। परिणाम यह होता है कि लोग धर्म को ढोंग समझ लेते हैं और उसका विरोध करने पर तुल जाते हैं। जैनशास्त्रों में धर्म की जो सुन्दर परिभाषा दी गई है, उसे दृष्टि के सन्मुख रख कर अगर धर्म के स्वरूप पर विचार किया जाय तो धर्म के संबंध में आज सर्वसाधारण में फैले हुए भ्रम शीघ्र ही दूर हो सकते हैं। जब हम इस तथ्य पर विचार करते हैं तो हमें गौरव का अनुभव होता है। हमें अभिमान होता है कि हमारे पास एक बहुत बड़ी और मूल्यवान् थाती है-अनमोल खजाना है। जैनशास्त्रों में दुनिया के सामने प्रकट करने के लिए घड़ी-बड़ी चीजें मौजूद हैं। हमारे पास बह आलोक है, जिससे विश्व का अंधकार दूर हो सकता है। पर हम उससे जमत् को लाभान्वित करने के लिना प्रयाशील होते हैं । वीतराग शासन की असीम कलाओं
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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