SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३५) सब प्रकार की विशुद्धि से युक्त है, अनन्त भविष्यत्काल तक मुक्ति मे विराजमान रहने वाले है। हे भगवन् । मुक्ति मे विराजमान सिद्धो को सादि, अनन्त आदि कहने का क्या कारण है ? हे गौतम | जैसे अग्नि से दग्ध बीजो मे पुन अकुरोत्पत्ति नही होने पाती है, इसी प्रकार कर्म-बीज के दग्ध होने पर सिद्धो की भी पुन जन्मोत्सत्ति नही होती है। इसीलिए कहा गया है कि मुक्ति मे विराजमान सिद्ध सादि अनन्त, अशरीरी, जीवधन प्रादि शब्दों से व्यवहृत होते है। मूल पाठ * जीवा ण भते । सिज्झमाणा करयमि सघयणे सिज्झति ? गोयमा । वइरोसभनारायसघयणे सिज्झति । हिन्दो-भावार्थ गौतम स्वामी बोले-भगवन् | सिध्यमान (सिद्धि को प्राप्त हो रहे) जीव किस सहनन मे सिद्ध होते है ? भगवान बोले-गौतम ! वजर्षभनाराच नामक सहनन मे सिद्ध होते है। * जीवा भदन्त ! सिध्यन्त' कतरस्मिन् सहनने मिध्यन्ति ? गौतम वर्षभनाराचसहनने सिध्यन्ति ।
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy