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________________ ( ५ ) वाला नही है । तीक्ष्ण और कटुक नही है । कसैला, 1 खट्टा और मीठा नही है । वह न कठोर है, न सुकुमार है, न हल्का है, न भारी है, न शीत है, न उष्ण है, न स्निग्ध है, न रूक्ष है, न शरीरधारी है, न पुनर्जन्मा है, न आसक्त है, न स्त्री है, न पुरुष है, न नपुसक है । वह ज्ञाता है, परिज्ञाता है, उसकी उपमा नही है । वह अरूपी है, अवर्णनीय है, शब्दो द्वारा उसका वर्णन नही किया जा सकता है । मुक्तात्मा शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श स्वरूप भी नही है । मूल पाठ एक्कतीस सिद्धाइगुणा पण्णत्ता, तजहा - खोणे आभिणिबोहिय - णाणावरणे, खीणे सुयणाणावरणे, खोणे ओहियणाणावरणे, खीणे मणपज्जवणाणावरणे * * एकत्रिशत् सिद्ध दिगुणा: प्रज्ञप्ता तद्यथा क्षीणमाभिनिबोधिकज्ञानावरण, क्षीण श्रुतज्ञानावरण, क्षीणमवधिज्ञानावरण, क्षीण मन पर्यवज्ञानावरण, क्षीण केवलज्ञानावरण क्षीण चक्षुर्दर्शनावरण क्षीणमचक्षुर्दर्शनावरण, क्षीणमवधिदर्शनावरण, क्षीण केवलदर्शनावरण, क्षीणा निद्रा, क्षीणा निद्रानिद्रा, क्षीणा प्रचला, क्षीणा प्रचलाप्रचला, क्षीणा स्त्यानद्धि, क्षीण सातावेदनीय, क्षीणमसातावेदनीयं, क्षीण दर्शनमोहनीय, क्षीण चारित्रमोहनीय, क्षीण नैरयिकायुष्क, क्षीण तिर्यगायुष्क, क्षीण मनुष्यायुष्क, क्षीण देवायुष्क, क्षीणमुच्चगोत्र, क्षीण नीचगोत्र, क्षीण शुभनाम, क्षीणमशुभनाम, क्षीणो दानान्त- राय, क्षीणो लाभान्तराय क्षीणो भोगान्तराय, क्षीण उपभोगान्तराय, क्षीणो वीर्यान्तरायः । , ر
SR No.010013
Book TitleJain Agamo me Parmatmavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1960
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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