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________________ ( ९० ) पाटलिपुत्रका बना हुआ, कालसे वसंत ऋनुका, भावसे नील घट है, सो यह स्वगुणमें अस्तिरूपमें है । वे ही घट परद्रव्य (प• यादि ) अपेक्षा नास्तिरूप है क्योंकि पटका द्रव्य तंतु हैं, क्षेत्र| से वे कुशपुरका बना हुआ है, कालसे हेमेंत ऋतुमें बना हुआ, भाव से श्वेत वर्ण है, सो पटके गुण घटमें न होनेसे घट पटापेक्षा नास्तिरूप है । तृतीय भंग वे ही घट एक समय में दोनों गुणों करके युक्त है, स्वगुणमें अस्तिभावमें है, और परगुणकी अपेक्षा नास्ति रूपमें है, जैसे कोई पुरुष जिस समय उदात्त स्वरसे उच्चारण करता है उस समय मौन भावमें नही है, अपित जिस समय मौन भावमें है उसी समय उदात्त स्वरयुक्त नहीं है, सो प्रत्येक २ पदार्थ में अस्ति नास्तिरूप तृतीय भंग है । जबके एक समयमै दोनों गुण घटमें हैं तब घर अवक्तव्य रूप हो गया क्योंकि वचन योगके उच्चारण करनेमें असंख्यात समय व्यतीत होते हैं और वह गुण एक समय में प्रतिपादन किये गये हैं इस लिये घट अवक्तव्य है, अर्थात् वचन मात्रसे कहा नहीं जाता । यदि एक गुण कथन करके फिर द्वितीय गुण कथन करेंगे तो जिस समय हम अस्ति भावका वर्णन करेंगे वही समय उसी घटमें नास्ति भावका है, तो हमने विद्यमान भावको अविद्यमान सिद्ध किया जैसे जिस समय कोई पुरुष खड़ा है ऐसे हमने उच्चारण
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
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