SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) गाहः अवकाशः स एव लक्षणं यस्य तत् अवगाहलक्षणं नम उच्यते ॥९॥ भावा:-धर्मास्तिकायका गमणरूप लक्षण है और जीव द्रव्य अजीव द्रव्यकी गति, यह द्रव्य साहायक भूत है; जैसे राजमार्ग चलने वालोंके लिये साहायक है क्योंकि, यदि पं. थीराज मार्गमें स्थित हो जावे तो मार्ग स्वयं उसको चलाने समर्थ नही होता है, किन्तु उदासीनता पूर्वक पंथीके चलते समय मार्ग साहायक है तथा जसे मत्सको जल साहायक है। वा अंधेको यष्टि (लाठी ) आधारभूत है इसी प्रकार जीव द्रव्य अजीव द्रव्यको गति करते समय धर्म द्रव्य साहायक है । और अधर्म द्रव्य जीव द्रव्य अजीव द्रव्यकी स्थिति करनेमें साहायक भूत होता है, जैसे उष्ण कालमें पंथीको वृक्षकी छाया आधारभूत है, तथा जैसे मही आधारभूत है इसी प्रकार जीव द्रव्य अजीव द्रव्यकी स्थिति करनेमें अधर्म है । और सर्व द्रव्योंका भाजनरूप एक आकाश द्रव्य है क्योंकि सर्व द्रव्योंका आधार भूत एक अंतरीक्ष ही है जैसे एक कोष्टकमें एक दीपक के प्रकाशमें सहस्र दीपकोंका प्रकाश भी वीचमें ही लीन हो जाता हैं। इसी प्रकार आकाश द्रव्यमें जीव द्रव्य अजीव द्रव्य स्थिति करते हैं । तथा जैसे एक कलश है जोकि पूर्ण दुग्धसे पूरित है,
SR No.010010
Book TitleJain Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Upadhyaya
PublisherJain Sabha Lahor Punjab
Publication Year1915
Total Pages203
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy