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________________ विजापुरका लग्न करन्यत्र की कोर कलिना नपक्दयस्य । अमिश्रियतापहतोरनाप यमुनत पाठपरजनावाः ॥(३४) धनुर्धरनिरोमणेरमलधर्ममभ्ययना जगा - म जलधेर्गुणो (गुनानग्य पार पर । ममीयुरपि नमुना मुमुग्य नागंणाना गणा मना चग्गिना मस्तनंब लोकोत्तर (१५) यायानुयन्य वियदाणं विधिपान बलगत्तुरगन्बुरग्माननीरजामि। तंजामिर्जितमनेन विनिर्जिनन्गद् भावान् पिलजित इकातिनरा निगभूत 16 ९ न कामना मनो धीमान र स्ना दधा। अनन्यौदार्यमत्कार्य मारयुर्योधनापि य (१७) यन्नंजामिरहम्कर मणया गादीदनि शुदया मीमो बचनयचितन वचमा थमण चर्मान्मज । प्राणेन प्रलयानि चलमिढी मत्रेण मनी परी रूपंण प्रमाप्रियेण १० महनी दानेन क()भवन ।।(10) सुनयतनय गज्य चारममाट मनिटिपन परिणतयया नि मगो या बभूव सुबी स्वय कृतयुगकृतं कृन्या जुन्य कुनामचमत्कृतीरकृन सुकृती नो कालुप्य क्रोनि कलिः मता ॥(१९) कालं कलावपि क्लिामलमंतीय रोका विकोक्य करनानिगन गुणी - १६ च । (पार्था)दिपाधिव(गुणा)न गणयनु सन्यानक मवाद् गुण निधि यमितीच वेपाः॥.. गोचरगति न वाचो नाभि चन्द्रचंद्रिकारविर । वाचल्यनबंचम्पी को बान्यो वर्णयत पूर्ण ॥(-1) राजधानी भुवी मस्तस्यान्ने हम्निकुण्टिका । अलका धनठम्यव धनान्यजनमविना ॥ (00) नीहारहारहरहाम(हि)१२ (मा) शुहारि (आ) का(र) वारि (भु)वि राजबिनि राणा । वास्तव्यमव्यजनचित्तसम (म)मनान् मतानिपटपहारपर परंपा ।। (२३) यौनकलातस्लशामिरामरामाम्तना इब न यम्या ।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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