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________________ जैनशिलालेख-सग्रह [१३ ३ भरमण्टमेगालमगोकेमोगेयु ओहिपा४ डियुं गोरियन्टम्मगलरुगण्डग वेढलेल मणकोहर • इटानलितु केडिसिटोनोवाल कदुग पंचम६ हापातकनस्कवन मक्कलु माग७ बसहियान्कंयदोन नारायण पं. ८ रुन्तचन् [यह लेख ९वी सदीकी लिपिम है। नरसींगेरै अप्पोर दुग्गमार (जो । गगवशका राजपुत्र था) द्वारा एक निनमन्दिर (कोपिलवमदि) को ६ खण्डग भूमि दान दिये जानेका इसमें उल्लेख है। इतनी ही भूमि अरमण्डमेगल, अगोकेमागे, मोड्डिपाडि इन ग्रामोके निवामियो-द्वारा तथा गोविन्दम्म-द्वारा दान दी गयी थी। श्रेष्ठ शिल्पकार नारायणने इस वमदिका निर्माणकार्य किया था। [ए.रि० मै० १९३२ पृ० २४० ] मोटे चेन्नर (पारवाड, मैसूर) ९वी सदी, कसर [यह लेख ९ वी सदीकी लिपिमें है। इसमें किसी वसदिके लिए चन्द्रनन्दि भट्टारको भूमि दान दी जानेका उल्लेख है । इस लेखकी स्थापना इन्दर पिट्टम्मके मेनबोव कुण्डमय्य-द्वारा की गयी थी।] [रि० सा० ए० १९३३-३४ प्रा० ई १११ पृ० १२९ ] कलकत्ता (नाहर म्युजियम) ९वीं मनी, काट १ श्री जिनबल्लमन सज्जन २ भागियधेय मादिसिट ३ प्रतिमे
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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