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________________ २८ नैनशिलालेख-संग्रह [५४ यक्षिणियोकी है और इनके शिरोभागमें जिनमूर्तियां खुदी हैं। अक्षरोकी लिपि तथा मूर्तिशिल्प ८वी-९वीं सदीके हैं। [ Medicval Indian Sculpture in the British Museum P 41-42] बदनगुप्पे ( मैसूर) सस्कृत-कसद, शक ३०-मन् ८०८ [ इस ताम्रपत्रके पांच पत्रोमें-से पहले तीन पत्र द्वितीय भागके लेख क्र० १२३ के समान है जिनमें राष्ट्रकूट राजाओका वशवर्णन गोविन्दराज३ तक किया गया है। चतुर्थ पन : पहली और ५. धारावर्षश्रीवस्तममहाराजाधिराजस्य पुत्र. शौचाचारप्रमुगुण गणप्रण११ मितसमस्तलोक परोपकारकरुणापरः परमेश्वरचरणारविन्दवन्द| নালিলল - ५३ णावलोकनीकम्मराज. पुषार एडेनाविपये चदनोगुप्पे नाम ग्राम तलव५४ ननगर अधिषलति विजयस्कन्धावारे । निशदुत्तरेवतीतेपु शक वपु कार्तिक५५ मास-पौर्णमास्यां रोहिणोनक्षत्रे सोमवारे कोण्डकुन्डेयान्वय सिमलगे५६ गूहगण कुमारणन्दिमारकस्य शिष्य एडवाचार्यगुरुः तस्य शिप्यो वधमा५७ नगुरु (0) सर्वप्राणिहितः साक्षात् सिद्धान्तानुगमोदता (1) शान्त सर्वकल्पोय नयोग
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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