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________________ २२ जनशिलालंग-पग्रह मुत्तुप्पट्टि (मद्राग) वलत्तुलिपि, यी मही [(जैनमूर्तिक नीचे - ) यह मृति वैग्नुनादा कुण्डि अट्टउपवागि भटारके गिन्य गुणमेनदवी मिप्य मानकरीपरियटिग-द्वारा बनायी गयी यो।] [रि० मा० १० १९१० ० ५७ 7०६१] मुत्तुप्पट्टि ( महास) वटेलतुलिपि, बी मी [ यह मूति कुण्ठि अष्टोपवामिर शिष्य माघनन्दि-द्वारा बनवायी गयी थी। [रि० मा० ए० १९१० पृ० ५७ ० ४२] ३३-३८ कोलकडि ( मद्राम) बलुत्तुलिपि, ध्वी महा [ यहाँ जैन मूर्तियोके समीप निम्न नाम युदे है - कनकनन्दि भटारके शिष्य अभिनन्दन मटारके शिष्य अरिमण्डल भटारसे शिप्य अभिनन्दन मटार (२)। अज्जणन्दिकी माता गुणमतियार | गुणमेनदेवके शिष्य अनत्तवन् मामेनन्का भतीजा आच्चन् यीपालन् । गुणमेनदेव पिण्य कण्डन् पोपट्टन् । वेणुनाडुके तिर कुरण्टिके सेवक कनकनन्दि । गुणमेनदेवके गिण्य अरयगाविदि, पल्लिक प्रमुग्न । ] [रि० सा० ए० १९१० पृ० ५७ ० ६३-६९]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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