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________________ ३१ अन्तिम तीन लेख कार्तवीर्य ४ के राज्यके सन् १२०१ इनमें राजा द्वारा जिनमन्दिरोके लिए दानोका दर्शनका वर्णन है । तथा १२०४ के है । वर्णन है । प्रस्तावना शिलाहार वंशके चार लेख मिले हैं (क्र० १९२, २२१, २२२, २५९) । इनमे पहला सन् १९१५ का है तथा इसमें राजा गण्डरादित्यद्वारा उनके जैन सामन्त नोलम्वको दो गांवोंके दानका वर्णन है । अगले दो लेखामें गण्डरादित्यके जैन सामन्त निम्वका वर्णन है । इसने सन् ११३५ मे एक जिनमन्दिरका निर्माण कराया था । अन्तिम लेखमें गण्डरादित्यके जैन सेनापति जिन्नण तथा विजयादित्य के सेनापति कालणका उल्लेख है । कालणने सन् ११६५ में एक मन्दिर बनवाया था । काकतीय वंशका एक लेख सन् १९१७ का मिला है (क्र० १९७) । इसमें राजा प्रोलके मन्त्री बेतकी पत्नी द्वारा अन्मकोण्डमे पद्मावती देवीका मन्दिर बनवानेका वर्णन है । गुप्त वंशके महामण्डलेश्वर विक्रमादित्यने सन् १९६२ मे पार्श्वनाथमन्दिरके लिए कुछ दान दिया था (क्र० २५७)३ कोगालव वशके शासक वीरकोगात्वने सन् १९१५ के आसपास सत्यवाक्यजिनालय नामक मन्दिर बनवाया था (क्र० १९३) । मैसूरके राजा चामराजकी रानी देवीरम्मणिने मेसूरके शान्तिनाथ - मन्दिरमें दीपस्तम्भ तथा कलश दान दिये थे ( क्र ५२४-५२५ ) । इनका १. पहले सग्रहमें इस वंशके तीन लेख हैं (क्र० २५०, ३२०, ३३४) । २.३. पहले संग्रह में इन दो वंशांका उल्लेस नहीं है । 8 पहले संग्रहमें इस वंशके छह लेख है जिनमें पहला सन् १०५८ का है (क्र० १८६) ।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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