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________________ ३० जैनशिलालेख-संग्रह ४६१ )। इनमें पहला लेख सन् १०५३ का है तथा इसमें राजा वीर सान्तर-द्वारा उसके जैन मन्त्री नकुलरसको कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । दूसरे लेखमें राजा तैलपदेवक जैन सेनापति गोगिकी मृत्युके वाद राजा-द्वारा उसके कुटुम्बियोको कुछ दान मिलनेका वर्णन है। यह लेख सन् १९६२ का है। तीसरे लेखमें राजा पाण्डयभूपाल द्वारा एक जिनमन्दिरके लिए भूमिदानका वर्णन है। यह लेख सन् १४१० का है । चौथा लेख सन् १५२२ का है तथा इसमें इम्मडि भैरवरस राजा-द्वारा वरागके नेमिनाथमन्दिरके लिए एक गांवके दानका वर्णन है। सिन्द कुलके सामन्तोंके चार उल्लेख मिले है (क्र. १३८, १६६, २६१, २६४)। इनमें पहला सन् १०५३ का है तथा इसमें सिन्द कचरसद्वारा नयसेन आचार्यको कुछ दान मिलनेका उल्लेख है। दूसरा लेख सन् १०८५ का है तथा यह सिन्द वर्मदेवरसके समयका दानलेख है। तीसरे लेखमें सन् १९६७ मे सिन्द होलरस-द्वारा एक बसदिको दान दिये जानेका वर्णन है। अन्तिम लेखमे सन् १९७० मे सिन्द चावुण्डरस-द्वारा जैन शालाको भूमिदान मिलनेका वर्णन है। रट्ट कुलके उल्लेख छह लेखोमें है (क्र० १७६, १८६, २५९, ३१७, ३१८, ३१९)। इनमें पहला लेख ११वी सदीका रापा कार्तवीर्य २ के समयका है, इसका विवरण अधूरा है। दूसरा लेख सन् ११०८ का है तथा इसमें राजा लक्ष्मीदेव-द्वारा निर्मित जिनमभरका उल्लेख है। तीसरे लेखमें सन् १९६५ में राजा कार्तवीर्य ३-वारा एक्कसम्वुगेके जिनमन्दिरके , पहले सग्रहमें इस घशक कई लेख है जिनमें पहला (क. १४६ ) मन् ६५० के भासपासका है। २ पहले सग्रहमें सिन्द राजाओंके लेख नहीं है। ३ पहले सग्रहम इस वशके इस लेख है जिनमें पहला (क्र० १३०) सन् २७५ का है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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