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________________ " जैनशिलालेस-सग्रह [४३३३ " विद्यवल्ली मुक सुलमरारम्य • स्थित जिनेन्द्रपादयुगपा भुंगा ससा४ र माब्धि तेसैद दुदुभूबरे५. तढीयवयोद्भवमगभूपो साहित्यलक्ष्मी 'मामाति लक्ष्मी जिनमदिरंषु काम कामितदायक कन-। ६ स्ट कन्डपसर्वप्रिय कल्याणकलनानन्त "श्रीमगभूपत्य जिनेन्द्र पाठद्वयपद्मगन्धमिलभृगोमवत् सन्तत ७ वदीयवशसभूत. केशवाख्य क्षितीश्वर वशीकरोति सहसा धन्टिगेहेपु सम्पद मुपासितुं भवतु ते गात्रं हि८ माद्रीकृत । श्रीमत्केशवभूमिपालचरितं श्रुत्वा स्तुवन् किन्नर तोपाकम्पितशंभुमौलिविलसद्गगातरगास्पद आश्रयाशो दहत्याशु स्वाश्रय स्वतनाथ सा (१ स्वीयतजसा) . केशवन्द्रप्रतापाग्नि नाश्रय तापयत्यहो । कंशवेन्द्रगुणान् वक्तु को वा शक्नोति पण्डित. आकाशस्थितनक्षत्रगणना केन मुच्यते ॥ वर्धमानान्बयोमत्रे निबूताश्रित१० दरिद्रे निजपतिनियमांतधियुते होन्नयरसि विशुद्धात्मिके पान वलिंग निलकमेनिक्कुं १ मा होन्नवरमियरसं श्रीहंबनृप जिनक्रमाबुनभृग बाहुवलनिर्जितरि११ पुभूप साहससमुहनमिनवकाम। तयोरभून्निर्मलजकबरसी नुता मुशीला जिनमत्तियुका तं चापयम वरमगभूपो जामातृवयों भुवि है१२ वराज. अनिन्दापि निर्गन्तु भौरव खलु योपित मगभूपाल कीर्तिस्तु कामिनीवानिलधिनी तयोरभूता जिननायननी मात्रा पुनीतासिलर्जनल
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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