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________________ ६९९ -४२] सक्कापट्टग आदिकं देख કરી सक्कापट्टण ( मूर) गक १३.८%Dमन १४०५, कन्नड 5 श्रीमन पग्मगारन्यादाढामाधगंछन् () जीयान त्रैलोक्यनायस्य मामनं जिनमाम्नं (u) • श्रीमद् गयगजगुर मण्डलाचार्य पुरविक्रमादित्य नव्याह३ कल्पवृक्ष मन्गगानगण्यामप्प श्रीमहन्नीमनमधारकरवर श्रीमन श्रीमान्मनदंवर निरिवि शक्य१५....३८ नेर पार्थिव मवत्सर १० लु ५ श्रीनुत्तर होसकर बहिय नस्कनु नायमहि बोग्मि हि __ नगगणमष्टि अवर नोन्मक बत्र६ गाष्ट्रिय नम्नहि कोबरिहि चिजगह नाटिसटियर मक्कलु कांवरिट्टियन [हब केन्दगण भट्टारक लटमासना गिय मानसनदेवकी समाधिमन्ना है। यह निपिषि मुत्तम्होरके वट्टि पुत्र मगरसेष्टि, गेमिट्टि नदिन गर १३२७ में न्यक्ति की गे।] [ए रि० म० १९२: पृ० ६२] કરર कोरग (६० कनडा, मैनर) शक १३३=मन् १९३०, काड [हले करव राजा मान्तर बंगौर वीरभैरव पुत्र पाण्डयजलवे मम्ब पर गृ० १०. गुन्बार, ग १३३१, सवारि मंबन्नरना है। इसमें बलाकारणारे वन्तीतिगटलकी प्रार्थनापर वारकून्त्री वमदिन दिए गजा-द्वारा वृद्ध भूमि दानका उल्लेख है।] [२० मा० ए० १९२८-२९ ३० ५३० पृ० ४१]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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