SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९५ -४५६ तरकणाविका लेस १६ काव्यगोष्टि-मरस विद्विष्टशलागनि सुरपुरमाढलान्तगल मीन केन्द्धर रूप मद्गुणोदय १७ हमयन एनल आश्चम मायणाय । (5) इन्नु होयमल भूविभुलमीरपनमुं 15 श्रीवीरवुवराजमानाज्यरमारमणीयविलामढपंणोपमं एनिसि मांगयिमुब होमपट्टणटोलु प्रमिद्विवडंट वै१९ ज्य मायण्ण माक्प्पगलु न "दबागि माडिट श्रीलक्ष्मीमन मटारकर निपचिय प्रतिष्ट मामन मगर महा श्री श्री श्री श्री श्री [यह निपिपिरेव नेनगणक लन्मीनेनभट्टारक्की मृत्युका म्मारक है। इनकी गत्परम्परा इस प्रकार थी -वीरसेन - जिनग्न - गुणभद्र विद्यदेव - मूरनेन - कमलभद्र - देवेन्द्रनेन - कुमारमेन - हरिमेन - प्रभाकरसेन - लन्मोसन । लन्नीननके गुन्बन्बु मदनमेन थे। यह निपिधि दलगार वाके मारण तया माकण नामक दो बचाद्वारा स्थापित की गयी थी। ये होनपट्टण निगमी थे। यह नगर होयमल प्रदेशमें था तथा बीरबुक्कराजके राज्यके अन्तर्गन था।] [ए. रि० मै० ११२७ पृ० ६१] ४१६ तेरकणांवि ( मैमूर) १थ्वी मी, कन्नड १ स्वस्ति श्रीमूलमंघ देशियगण पुस्तक२ गच्छ कॉइकुंटान्वय हनमोगय बलि३ य राजगुर ( मड) लाचायंरमप्प (मम )४ यामग्ण रलितकीनिमहारक्रु माडिमिट ५ (प्रतिमे ) मगळ महा श्री श्री श्री
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy