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________________ २० जैनशिलालेस-सग्रह लिए दो गांवोके दानका वर्णन है। चौथे लेखमे (क्र. ६३) राजा दुग्गमारद्वारा नवी सदीमे एक मन्दिरको भूमिदान देनेका उल्लेख है। इसके बाद दसवी मदीके प्रारम्भके एक लेखमे (क्र० ७६) एरेय राजाके समय एक जैन आचार्यक समाधिमरणका वर्णन है । सन् ९५० के एक लेख (क्र० ८३) मे राजा व्रतुगको रानी पद्मब्बरसि-द्वारा निर्मित जिनमन्दिरके लिए कुछ दानका वर्णन है। सन् ९६२ मे राजा मारसिंह २ ने अपनी माता-द्वारा निर्मित मन्दिरके लिए एलाचार्यको एक गांव दान दिया था (क्र० ८५) इसी वर्षमे इस राजाने मुजार्य नामक जैन ब्राह्मणको भी एक गांव दान दिया था (क्र० ८६)। सन् ९७१ मे इस राजाके समय खजिनालयको कुछ दान मिलनेका वर्णन एक लेखमे (क्र. ८८) में है। दसवी मदीके अन्तके एक लेख (क्र० ९६) में राजा रक्कसगग तथा ननियगगके समय कुछ दानका वर्णन है। एक लेख (क्र० १५४) मे तुग राजा तथा रानी रेवनिमंडिका उल्लेख है। इनकी स्मृतिम गगकन्दर्प नामक जिनमन्दिर अण्णिगेरे नगरमें बनवाया गया था। एक अन्य लेखमे (क० २०७) पुन रानी रेवकनिमहिका उल्लेख हुआ है। इस तरह गगवशके राज्यकालमें जैनसघकी स्थिति सदा ही प्रभावशाली रही थी। (आ २) कढम्ब वश - इस वशके स्वतन्त्र राज्यकालका एक लेप (क्र. २१ ) इम सग्रहमें है जो छठी सदीके राजा रविवर्माक समयका है। इस राजाने एक सिद्धायतनके लिए कुछ भूमि दान दी थी। गष्ट्रकूट तथा चालुक्य साम्राज्यमे कदम्बवशके कई सामन्त प्रादेशिक शामक थे। ऐसे सामन्तोके कोई १५ लेस मिले है। सन् ८९० के एक १ परलं सग्रहम गग वशक कई लेख हैं, जिनमें सबसे प्राचीन लेस (३० ९० ) पॉचवीं सदीके उत्तराधका है। २. पहले सग्रहम इस वंशके टस लेस है जो पाँचवीं व छठी सदीक है (ऋ० ९६-१०५)।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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