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________________ २६९ -३७५ तवनन्दी आदिके लेख २६९ ३७४ तवनन्दी (मैसूर) १३वी सटी, फलढ १ स्वस्ति श्रीमूलसब सूर- २ स्वगण चित्रकूटान्वयन ३ प्रतिबद्ध [ यह छोटा-सा लेख एक खण्डित जिनमूतिके पादपीठपर है। मूलमघ-मूगस्तगण-चित्रकूटान्वयके किमी व्यक्ति द्वारा यह मूर्ति स्थापित की गयी थी। लिपि १३वी सदीकी है।] [ए. रि० मै० १९४२ पृ० १८५] ३७५ वरुण (मैमूर) १३वीं सदी, सस्कृत-कसद १ श्रीमद् द्रविल- २ संगस्य नन्दिसं ३ घे हारुगले अ- ४न्वयेऽशेषशास्त्र५ज्ञ श्रीपाल ६ मुनिराश्रिय ७ तच्छियो विदुषां श्रेष्ठ पनप्रम९ मुनीश्वर. तस्य १० पुत्र तपोती११ धर्मसेनमहा १२ मुनि ॥ सोयं १३ शुद्ध() स्वमावस्तो- १४ बायां (न)रपरिग्रहा१५ त्त्यक्ती जिनपटाने १६ त्रिदिव गतवान् बुध५७. [इस लेखमें द्रविलसप-नन्दिसप-अरुंगल अन्वयके आचार्य श्रीपालके प्रशिष्य तथा पमप्रभके शिष्य धर्मसेनके समाधिमरणका उल्लेख है । लेखको लिपि १३वी मदीकी प्रतीत होती है।] [ए. रि० मै० १९४० पृ० १७२ ]
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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