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________________ जैनशिलालेख-संग्रह [३६: ३६१-३६७ चिप्पगिरि ( जि. वेल्लारी, मैसूर) १३वी सटी, कन्नड [ये छह लेख है। मूलसघ-देशीयगण-कोण्डकुन्दान्वय-पोस्तकगच्छके केशणदि भटारके शिष्योके समाधिमरणका इनमें उल्लेख है । इन शिष्योंक नाम है-गोपरस, तथा उसकी पत्नी हालौवे, मादलदेवी, तिप्पयकी पली जाकवे, नागलदेवी, मूलिग तिप्पय, वैतलेय बोम्मिसेट्टि तथा उसकी पली बीमवे । लिपिके अनुसार ये लेख १३वी सदीके प्रतीत होते है। इसी समयके एक और लेखमें माधवचद्र भट्टारकदेवके शिष्य परिसयके समाधिमरणका उल्लेख है। (रि० सा० ए० १९४४-४५ ई ६३-७२) ३६८ अदरचि (जि. धारवाड, मैसूर) १३वीं सदी, कन्नड [यह लेख लिपिपर-से १३वी सदीका प्रतीत होता है । यापनीय सघ-काडूरगणकी एक बसदिके लिए दी हुई जमीनको सीमा बतलानेवाला यह पत्थर है। यह वसदि उच्छगि नगरमें थी। यह दान अदिगुण्टेके गोण्ड और स्थानिको-द्वारा दिया गया था।] (रि० सा० ए० १९४१-४२ ई० क्र० ३ पृ० २५५) ३६६ वसवपट्टण ( हासन, मैसूर ) १३वीं सदी कन्नड १ श्रीमूलसघ टेसियगण पोस्तकगच्छ २ कॉडकुंदान्वयट इंगलेश्वरद ब
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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