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________________ जनशिलालेख-संग्रह इन आचार्यों के उल्लेख मिलते है। प्रस्तुत सग्रहमें पुस्तकगच्छके उल्लेख विना किसी उपभेदके भी कई लेखोमे मिलते है। इनमें पहला लेख (क्र. १६४ ) सन् १०८१ का है तथा इसमें सकलचन्द्र भट्टारकका उल्लेख है। इस प्रकारके अन्य लेख १७ है (क्र० १७१, १७७-८, १९०, २०३, २३४, २५१, ३१८-९,३६१-६, ४९०, ५६१)। ये लेख १६वी सदी तकके है । इनसे कोई विस्तृत गुरुपरम्पराका पता नही चलता। देशीगणके दूसरे उपभेद आर्यसधग्रहकुलका उल्लेख एक ही लेख (क्र० ९४ ) में मिला है। यह लेख दसवी सदीका है तथा इसमें कुलचन्द्रके शिष्य शुभचन्द्रका उल्लेख है। विशेष यह है कि यह लेख उडीसाके एवण्डगिरिपर्वतपर मिला है जब कि देशोगणके अन्य उल्लेस मैसूर प्रदेशके है। देशी गणका तीसरा उपभेद चन्द्रकराचार्याम्नाय भी एक ही लेखसे ज्ञात होता है (क्र० २१७) तथा यह मध्यप्रदेशमे मिला है। इसमे प्रतिष्ठाचार्य सुभद्र-द्वारा १२वी सदीके पूर्वाधमे एक मन्दिरको प्रतिष्ठाका - - देशी गणके चीथे उपभेद मैणदान्वयके शुभचन्द्र आचार्यका एक उल्लेख १३वी सदीमे मिला है (क्र. ३७२ )। .. पहले संग्रहमें इगुऐश्वर बलिक उल्लेस सन् १९८३ (क्र. ४११) से सन् १५४४ (क्रः ६७३) तकके हैं। २ पहले सग्रहमें पुस्तक गोछा उल्लेख सन् २६० (३० १२७) मे सन् १८१३ (क्र० ७५३ तक है। ३, ४ पहले सग्रहम इन दोनों उपसेदोका कोई उल्लेख नही है। ५. पहले सग्रहमें हम अन्वयका लेस नहीं है इससे मिलता जुलता एक उपभेट बाणद बलि है जो पुस्तकगच्छके अन्तर्गत था (० ४७८ ) इसका उल्लेस सन् १२३२ का है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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