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________________ -110] विज्ञालियाका लेख १८९ . ननया मुक्त त्मनामा(नि)ना श्रीमन्मुक्तिनिनविन स्तनतटे हाश्रिय विन्नति ॥ मचाना हृदयामिरामबमनि मद्धम(मन)यिनि कमेन्मलनसंगान शुमननि. निबांध(वा)बी नि. । जीगनासकारणानि श्रेय श्रिया समृनि. देयान्ने मवम्भृति शिव(म)नि जन चनुर्विगति ॥ ९ ॥ श्रीत्राहमानलिनिगजवः पावाप्यों न जहावन । मिन्त्री नां६ ( गो नत्र ) युक्नो नो नि फर मारयुना नना नौ ॥१०॥ लावण्यनिमलमहाज्वलिनांगप्टिरच्छोच्छलच्छचिपय परिबानधा(बी। उत्तुंगपवनपयोधरमाग्भुग्ना शाक्मराजनि जीव तनापि विष्णो. ॥1॥ विन श्रावस्मगोत्रमूहिच्छत्रपुर पुग। मामनोनतमामन्न. पूर्णतरला नृपस्तन ||२|| नम्माच्छी जयराजविग्रहनृपी श्रीचन्द्रगोपेन्द्रका तस्माद्द(लं)नगूबको गशि• नृपो गूवाकसञ्चंदनौ। श्रीमज्ञप्पयराजविध्यनृपती आसिंहराविग्रही। श्रीमद्दुलं मगुढुवापनिनुपा श्रीबीयंगमोऽनुजः ॥१३॥ (चामुंडा ) वनिपोऽतिउन गणश्वर श्रामिघटी दूमल्न्नभ्राताथ तारि बामलनृप पाराजवाप्रिय । पृथ्वीराज. नृरोथ नत्तनुमत्री गसल्लदवाविभुस्तत्पुत्रो जबटव इत्यवनिप मामल्लदेवीपति ॥१४॥ हत्या चचिनिधनाभिधयसाराजाठि वीरत्रयं । ८ क्षिप्रं कृतांतवयकुहर श्रीमार्गदुन्वित । श्रीमा(एल)ग दण्डनायवर सत्रामरगागणे जीवन्ध नियंत्रित करमक येन (लि)मान ॥१॥ अण्णाराजोस्य सूनुभूतहटग्रहरि मन्त्रवांशिष्टमीमी गामायौदार्यवयं मममबद(चि)रालब्धनभ्यो न दीन । तञ्चित्रं जं न जाड्यस्थितिरवृत महापकहंतुनं मध्या न श्रीमुक्ती न ढोपाकरचितरतिनं द्विजिहाबिसंव्य ॥१६॥
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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