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________________ जैनशिलालेख-सग्रह [11 १५४ २११ वरांग ( मैमूर) १२वी सदी-मध्य, कन्नड [यह लेख आलुप राजा कुलोसरके समयका है। इसमें माधवचन्द्र, प्रभाचन्द्र, तथा श्रीचन्द्र इन आचार्योका उरलेस किया गया है।] [रि० आ० स० १९२८-२९ पृ० १२७ ] ૨૧૨ दडग (माट्या, मैमूर) १२वी मदी- पूर्वाय, स्मट , श्रीमतपरमगमीरस्यावादामोघलान (1) जी२ यात् त्रैलोक्यनाथम्य शापन जिनगासन (1) ३ कुलरत्नाकरनील कास्नुमादिगल बोलु पलरं लोकोपकारपरिणतर एकीकृ५ तसकलराजगुणरु सकलजनीति यादवकुलहाल पुलि पाये ५ सलेयिं पुलिय पोय सल येने पायदुदार पारमणवसरवनिंद वाद६ रिल"नयं प्रटारण नना "युटि जग७ नयनिमि पोरेट विनयादित्य समस्तभुवनस्तुल्य आतंगतिमहिम८ समारयावकीर्ति सन्मूर्तिमनोजात मर्दितरिपुनृपजातं तनुजाव नाढन् एश्यग९ नृपं ॥ च धर्मार्थकामसिद्विवोल अवनीवरलभर भावन तन१० थर बल्लाल विष्टिदेवन् उदयादिस्य ॥ मृबर- बनयरोल तां माविस म
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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