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________________ १४० जैनशिलालेख-सग्रह [ १९३प्रदेशके अकुलगे तथा चोप्पेयवाड इन दो ग्रामीका अधिकार अर्पण करनेका उल्लेख इसमे किया है। नोलवकी वशावली इस प्रकार थी-होरिम-धीरणकुदाति - उसका बन्यु नायिम-नोलव । नोलवको सम्यक्त्वरलाकर तथा पद्मावतीलब्धवरप्रसाद ये विशेपण दिये है।] [ए० इ० २७ पृ० १७६] होले नरसिपुर (मैसूर) १२वीं सदी : पूर्वाध (सन् १९१५), कन्नड [ इस लेखमें महामण्डलेश्वर चीर कोगावदेव-द्वारा मूलसंघ-देसिगणके मेघचन्द्र विद्यके शिष्य प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवके उपदेशसे सत्यवाक्य जिनालयके निर्माणका तथा उसे हेण्णेगडलु ग्राम दान देनेका उल्लेख है। (समय लगभग सन् १११५।)] [ए० रि० मै० १९१३ पृ. ३३ ] १६४ करन्दै ( उत्तर अर्काट, मद्रास) __ सन् १९१५, तमिल [ यह लेख चोल ममा कुलोत्तु ग राजकेसरिवर्मन्के ४५वें वपमें लिसा गया था। तिरुप्परम्बूरकी आमसभा-द्वारा तिरुक्काट्टापल्लि आल्वार जिनमन्दिरके लिए कुछ भूमि विक्रय किये जानेका इममें उल्लेख है।] [रि० सा० ए० १९३९-४० ऋ० १३५] तिरुप्पत्तिकुण्डम् (चिंगलपेट, मद्रास) राज्यवर्ष ४६ - सन् १११६, तमिल [यह लेख राजकेसरिवर्मन फूलोत्तुग चोलके ४६वें राज्यवर्षका है।
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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