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________________ १०४ - - - जैनशिलालंप-सग्रह [१५४१५ यद पूर्वावतारमन्तेन ॥ श्रीवसुधेशन याव रंबकनिर्म दिया बल्लमं वृतुगनामावगतमकलशास्त्रनिलाविश्रुतकीर्ति १६ गगमढलनाय ॥ ॥ रूढिगे रूटिवेसेट बेल्बलदेशमनाल गगाडिगलिन्दमणिगरे नालकोवढेनिमित्त नाट नाटा१७ डिगलुंगमविनेगमा पुरटोल जयदुत्तरंग पर्मादियिनानु यूदग नरेंद्रनिनलिल जि१८ नंद्रमदिर ॥ ॥ संगतमागे माहि तलवृत्तियनल्लिगे मुहगरे गुम्मुंगोलनादियागे नेगट्टि१९ ग गावरिवाडमय यादगल शासनं घेरसु मर्धनमस्यमिदु मिट्ट कोट गुणकीर्तिपडितगें भक्ति२० यिनुत्तमदानशक्वियि का उदितोदितमेने विभवास्पटमने भुवन यकवन्धमेने संचलमागढे गगा२१ न्वयमुलिनमिदु सर्वनमस्थघागि नडयुत्तमिरलु ॥ ॥ परम श्रीजिनशासनक्के मोदलाही मूलस, २२ निरन्तरमोप्पुत्तिरे नन्दिसंघमरिंदाउन्नय पपुवेत्तिरे सन्दर पलगारमुल्यगणदोल गगान्वयक्कि२३ तिवणुलाल तामने वर्धमानमुनिनाथर् धारिणीचक्रटोल ॥ श्रीनाथर् जैनमार्गोत्तमरेनिसि तपाख्यातिय २४ ताल्दिदर् सज्ज्ञानात्मर वर्धमानप्रवरवर शिप्यर् महावादिगल विद्यानन्दस्वामिगल तन्मुनिपतिगनुजर् तार्किका२५ कामिधानाधीनर् माणिक्यनंदिनविपतिगलवर शासनोदात्त हस्तरु । तदपत्यर् गुणकीर्तिपढितर् अवर् तच्छास
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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