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________________ -१३०] मुलगुन्दका लेख १० रे तत्पादपोपजीवि ॥ वृत्तं । विनयक्काधारभूत पतिहितचरित काश्रयं सद्विवेकक्के निवास११ संपत्तिगे, कुलमवनं सन्ततानूनदानक्के निधानं मान्तनक्कागर मेने नेगलद सद्वचोभूषण भूविनु (तं) (वे.) १२ लदेवनुद्यविधुविशदयशोव्यानदिकचक्रवाल पर ईव गुणं गुणं पतिहिताचरित चरितं परोप (का.) १३ रावसथार्थमर्थमघमिज्जिनतनमे तत्वमेध सद्भावने तम्मोलोन्दि नेलेवेत्तिरे कीर्तिगे नोन्तरिन्तु १४ बेलदेवनुमोल्पनाब्द वलदेवनुमकद शान्तिवर्मनु (३) वचनं । भन्तु सकलगुणगणोतुगर जिनधर्म१५ निर्मलरुं निखिलजनोपकारनिरतस्मुदात्तकीर्तिलतानिकेतनरुम गलदेवप्रियतनूमवरु गोजि१६ काम्बिकाकृशोटरनिविडनिवद्धपट्टरुमागि पोगल्तेवेत तत्सहोदर त्रयदोल अग्रमवनप्प सन्धिविन१७ हाधिकारि ॥ वृत्तं । जिनपादांबुजगनगननिम गम्यार्थरस्नाकर मनुमागं विनयार्णवं कलिमलमध्वंस१८ के केशिराजन वटि नयसेनसुरिपदपद्माराधनारतचित्तनुदात्तं नेगल्द विवेक-महीमाग१९ दोल ॥ ४ मा महानुभाव धर्मप्रमावप्रकटीकृतचित्तनागे ॥ कन्दं । मिन्द-कनवलानन्दनकररू २० पनसमसाहसनिलयं सिन्दनुपनन्दनं लसदिन्दुकरप्रतिमकीर्ति कान्ताकान्त ॥ ५ जिनधर्मनिर्मलं सत्यनिधा२१ नननूनदान-अनन्दिन कंचरस पंचेषुनिमं मुल्गुन्दसिन्ददेश ललामं ॥ ६ एंव पेंपिंग जसक्कमागरमा
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
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