SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१३.] हुलिका लेख ७९ ८ विख्यातियुते हम्मिकल्वेगे सीतेगे सरि मागेणब्बे लच्छलेयोगे दर ॥(३) इष्टज९ नक्क चट्टममयक्के महाजनमोजनक्कयुत्कृष्टतपोधनगैयलिदायव१० नक्क सकंन्यकालिकाग्निष्टगेगेरटे नाल्कुममयनुरागढे बंगवि११ तु सतुष्टत लच्छियव्यरमिगार मरियर सचराचरोवियोलु ॥(४) १२ मकलधरित्रियोल नेग वढिजन सले रूपिनल्गय प्रकटतवेत्त दा१३ नगुणम कुलदुनतिय जिनाघ्रिगलगकुटिलचित्तम पोगलुति'. १४ दु डिय लिंकनकपालकन कुलांतमागर्नयनयिये लच्छलदेविय १५ जग ॥ (१) शरनिधिमंसलावृतवसुधरेयव विलासिनीमुखाबुम्ह ढबोलविराजि१६ सुब बेल्बलनालक पोदलह शोभेगागरमनि(सि)पं पूलि तिलका कृतिचिंटेसेदियुंदा पुरं सुरपु१० रम स्रनलकापुरम नगुगुं विलासदि । (६) अल्लि ॥ सक्ल व्याकरणाशा१८ स्वचयदोलु काव्यंगलोलु सद नाटकटोलु वर्णकवित्वदोल्नंगई वेदांतंगलोलु १९ पारमाथि(क)दोलु लौकि(क)टोलु समस्तक्लेयोलु वागीशनिटं यशोधि२० करादर् पोगलबलिगारलवे पेलु मासिवर रयातिय ॥ (७) स्वस्ति शझनृपकालातीतसवत्सर२१ शनगलु ९६६ नेय तारणमवत्सरट पुष्य सुद्ध १० आदिवार मुत्तरायण यजनयाजनाध्ययनाध्यापनढा निरतरुं श्री२३ (म)च्चालुक्यचक्रवर्तिबापुरिस्थानपितृपितामहमहिमासदरक्षणा
SR No.010009
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages464
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy