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________________ जैन-शिलालेख संग्रह स्वर्गगत राजा (शान्तिवर्मा) को भक्तिसे पलाशिका नामक नगरमें जिनालय निर्माण कराके अपनी विजयके आठवें वर्षमें यापनीयों, निर्ग्रन्यो और कूर्चकोंके लिये भूमि दान किया है । यहाँ कुर्चक सम्प्रदाय दिगम्बर सम्प्र. दायका ही एक भेद मालूम पढता है। [इ० ए०, जिन्ट ६, पृ० २४-२५] । हल्सी-सस्कृत। -[१] प्रथम पत्र [१] जयति भगवाजिनेन्द्रो गुणरुन्द्रः प्रथितपरमकारुणिकः त्रैलोक्या [२] श्वासकरी दयापनाकोच्छूिना यस्य । खामिमहासेनमातृगणानु[३] ध्याताना मानव्यसगोत्राणा हारितीपुत्राणा प्रतिकृतस्वाध्याय च [र्चा - दूमग पत्र, पहिली मोर । [४] पारगाणाम् स्वकृतपुण्यफलोपभोक्तृणाम् स्वबाहुवीर्योपार्जि[५] तैश्वर्यभोगभागिनाम् सद्धर्मसतम्बाना कदम्बानाम् ॥ काकुस्थ[६] वर्मनृपलब्धमहाप्रसाद सभुक्तवाञ्छूतनिधिश्श्रुतकीर्तिभोजः ___ दूसरा पन, दूसरी ओर। [७] ग्राम पुरा नृषु वर पुरुपुण्यभागी खेटाहक यजनदानटयो[८] पपन्नः ॥ तस्मिन्वयाते शान्तिवमविनीश मात्रे धार्थ दत्तवान् दा[९] मकीर्त. भूमौ विख्यातस्तत्सुतश्श्रीमृगेशः पित्रानुज्ञात धाम्मि को ढान - १ देखो अनेकान्त, वर्ष ७, किरण १-२, पृष्ठ ७-८, में श्री प. नाथूरामजी प्रेमीका 'पूर्चकोमा सम्प्रदाय' नामक लेख ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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