SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहायका लेख कहाऍ - संस्कृत [ गुप्तकाल १४९ वां वर्ष = ४६९ ई. स ] ५९ सिद्धम् । [१] यस्योपस्थान भूमिर्नृपतिगतशिर पातवातावधूता [२] गुप्ताना वराजस्य प्रविसृतास्तस्य सर्वोत्तम [ ३ ] राज्ये शक्रोपमन्य क्षितिपातपते. स्कन्दगुप्तस्य शान्ते [ ४ ] वर्षे त्रिंशकोत्तरकशततमे ज्येष्ठमासि प्रपन्ने ॥ १ ॥ [५] ख्यातेऽस्मिन् ग्रामरने ककुभ इति जनैस्साघुनसर्गपूते [६] पुत्रो यत्सोमिलस्य प्रचुरगुणनिधेर्भट्टिसोमो महात्मा [७] मनुरुद्रसोम [:] प्रथुलमतिया व्याघ्र इत्यन्यसज्ञो [ ८ ] मद्रस्तस्यात्मजोऽभूद् द्विजगुरुयतिषु प्राया प्रीतिमान् य. ॥ [९] पुण्यस्कन्ध म चक्रे जगदिदमखिल मसरद्वीक्ष्य भीतो [१०] श्रेयोऽयं भूतभयै पथि नियमवनामनामादिकर्तन [ ११ ] पश्चन्द्रास्थापयित्वा वरणिवरमयान् मन्निखातस्ततोऽयम् [१२] लस्तम्भ सुचारुगिरिवरशिखराम्रोपम कीर्त्तिकर्त्ता ॥ ३ ॥ [ इस गिलालेसमें, जो कि गुप्तकाल के १११ वें वर्षका है, बताया गया है कि किसी भद्र नामके व्यक्तिने, जिसकी कि वशावली यहा उसके प्रपितामह सोमिल तक गिनाई है, अर्हन्तों (तीर्थकरों ) में मुख्य समझे जाने वाले, अर्थात् आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्व, और महावीर, इन पांचोंकी प्रतिमानोकी स्थापना करके इस स्तम्भको खड़ा किया । लेखकी ११ वीं पंक्तिके 'पञ्चेन्द्रान' से इन्हीं पांच तीर्थकरोंसे मतलब है । ] [ इण्डियन एण्टिक्वेरी, जिल्द १०, पृ० १२-१२६ ]
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy