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________________ मथुराके लेख २. को अयवृधहस्ति अरहतो णन्दि [आ] वर्तस प्रतिम निर्वर्तयति । व.. ... 'भार्यये श्राविकाये [दिनाये ] दानं प्रतिमा बोद्वे थुपे देवनिर्मिते प्र... ... . __ अनुचाद-वर्ष ७९, वर्षाऋतुका चौथा महीना, २० का दिन, इस दिन, कोटियगण (तथा) वडरा (वब्रा) शाखा के वाचक अय-वृधहस्ति (आर्य वृद्धहस्ति) ने दीना [दत्ता] श्राविकाको, जो... की भार्या थी, एक अर्हत् णन्दिआवर्त (नन्द्यावर्त) की प्रतिमाके निर्माणके लिए कहा । दीनाकी यह प्रतिमा देवनिर्मित वोह स्तूपपर प्रतिष्ठित हुई। [El, II, n° XIV, n° 20] मथुरा-प्राकृत-भन्न । । हुविष्क वर्ष ८०] १. [सिध] महरजस्य स ८० हण व १ दि १२ एतस पूर्वाया · ... धितु संघनधि [स्य ] वधुये बलस्य ..." अनुवाद-[स्वस्ति। ] महाराज वासुदेवके ८० वें वर्षमें, वर्षाऋतुके १ ले महीनेके १२ वें दिन,......"की पुत्री, सघनधि (?) की बहू, बलकी ....... .....(अपूर्ण). [El, n° ILIII, n° 24] २. मथुरा-प्राकृत-भन्न । [ ] वर्ष ८१ १. स ८० १ व १ दि ६ एतस्य पुवाय [अ] यिकाजीवाये अते२. बासिकिनिये दताये निवतना । [ग्र) हशिरिये... १ 'प्रतिष्ठापिता'। २ नन्द्यावर्त्त जिसका चिह्न है ऐसे १८ वें तीर्थङ्कर अर्हनाथ भगवान्की प्रतिमा।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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