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________________ मथुराके लेख ३९ ३..."वस्य दिनरस्य शिशिनि अय्य जिनदसि पणति-धरितय शिशिनि अ . ४. धकरवपणतिहरमसोपवसिनि वुचुस्य धित रज्यवसुस्यधर्म...' ५. [द] विलस्य मतु विष्णु भ] वस्य पिदमहिक विजयशिरिये दन वध......... ६. . ..... .... .. . .. अनुवाद-५० वां वर्ष, शीतऋतुका दूसरा महीना, पहला दिन, इस दिन, वरण (वारण),गण, अव्यभिस्त (1) कुल, सं [कासिया ] शाखा, शिरिग्रह (श्रीगृह) संभोगके महावाचक तथा गणि समदि 'व दिनर की शिप्या अय्य-जिनदसि (आर्य जिनदासी) की आज्ञाको माननेवाली... अय्य धकरव (2) की आज्ञाको धारण करनेवाली विजयशिरि [विजयश्रीने] दानमें वध [मान] अर्थात् वर्धमान की प्रतिमा...... । यह विजयश्री बुबुकी पुत्री, रज्यवसु (राज्यवसु) की धर्मपली, देविलकी माँ (और) विष्णुभवकी नानी थी और इसने एक महीनेका उपवास किया था। [El, II, n° XIV, n° 36] रामनगर-प्राकृत । [ काल? वर्ष ५०] - - वर्ष राजा स्थान ___कहाँ विशेषता रामनगर AS N-W-P-0, दूसरा महीना, शीतऋत. MAnnual report पहला दिन, ब्राह्मी (अहिच्छत्र) 1891-1892, p 3/ लिपि [JRAS, 1903, p 7-14, n° 40] १ वर्मपत्नी पढ़ो। २ वधमान प्रतिमा' या शायद 'प्रतिमा' ।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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