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________________ ४४२ अवर शिष्यरु || जैन - शिलालेख संग्रह इन्दोश्च कान्तमति- विस्तृतमम्वराच भूमेश्च भूरि जळवेश्च गभीरमास्ते । मेरोश्च तुङ्गमजितेश यास्तवोर्व्याम् मत्तेभ - विम्वमित्र मानव - तारकेऽद्य ॥ - इन्तेनिसिदजितसेन - भट्टारकरप्र-शिष्यरु || घन वद्ध-क्रोध-धात्रीघर कुळ-कुळिशं मान-माद्यद्-गजाल्फान-भद्रेभरि माया - गहन दहन - दावानळं संस्फुरल्लो- । भ-नितान्त-ध्वान्त-विध्वसन -खर - किरण श्राव्य-काव्य-प्रियं भव्य-निकायाम्मोधि-संबर्द्धन-हिमकरणं मल्लिपेण-व्रतीन्द्रम् ॥ एने गळ्द मलिपेण-मलधारि - देवर शिष्यरु || आळापं वेड नैय्यायिक निज-मतम नच्चदिर् स्साख्य माणू वा । चाळलं सल्ल मीमासक तोडरदेले बौद्ध पो पोगु वादि - । व्याळेभोत्तुग-कुम्भ-स्थळ विदळन - कण्ठीरव वन्दपं श्री - 1 पाळ-त्रैविद्य-देवं जिन-समय-सुधाम्भोधि-सम्पूर्णचन्द्रम् ॥ खस्ति श्रीमच्चाळुक्य-विक्रम - कालद ५३ य कीलक-संवत्सरदुत्तरायण-संक्रमणदन्दु श्रीमत् - सेम्यनूर स्तानाचार्य शान्तिशयनपण्डितर कम्यलु श्रीमत्-पिरिय-दण्डनाय किति काळिकवेगळु धारापूर्व्वक माडिसि कोण्डु पार्श्व-देवर कूटक्कं देवर वि... पूजारिय वियक्क हलकट्टद केळगे बिट्ट गद्दे कम्म ४५० आ-केरेय हडुवण - कोडियोळगे वेब्दले मत्त १ इन्ती-धर्म्ममना रोर्व्वरचिय स्थानाचार्यरु देवगुत्तरं.... निर्व्वरु वेस-वक्ककुं तप्पदे प्रतिपालिसुवरु मत्त स्थानिकेरेय केळगण
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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