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________________ ૮ जैन- शिलालेख संग्रह स्वस्ति समस्त भुवनाश्रय श्री - पृथ्वी लम-महाराजाधिराज परमेश्वरपरमभट्टारक सत्याश्रय-कुळ-तिळक चाळुक्याभरण श्रीमत्-त्रिभुवनमलपेमडि- देवर विजय राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि-प्रवर्द्धमानमा चन्द्रार्क- ना रम्बरं सलुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि || वृत्त | वनधि-व्याप्तावनी - चक्रदोळति-सुभट विक्रमायत्त चित्तम् । मुनिसिं माराम्पनात्र त्रिपुर - विजयिगं शूद्रक सुपर्णी- 1 तनयङ्ग फल्गुणङ्ग दशरथ-तनुजङ्ग सहस्रार्जुनङ्गम् । दनुजप्रध्वंसिग कौरव नृप-रिपुग पाण्ड्य-भूपाळकङ्गम् ॥ भरब्न्दिङ्ग-कलिङ्ग-वङ्ग-मगधं नेपाळ - पाञ्चाळ - गुरु- । जर-गौळ-द्रविळान्ध्र-माळव-तुरुष्का' सौराष्ट्र-वर- । .........मरोत् । व्वर-काश्मीर करम वेकोळुब भयङ्क......ण पाण्ड्य भूपाळकम् ॥ स्वस्ति समधिगत-पश्च-महा-शब्द महामण्डलेश्वरं काञ्ची -पुर-बराधीश्वरं यदुवशाम्वरमणि सु-भट-चूडामणि निज-कुळ-कमळ-मार्त्तण्डं परिच्छेदि-गण्ड राजिग-चोळ-मनो-भङ्ग श्रीमत् - त्रिभुवनमल्ल-देव-पादाब्जमृङ्गं नामादि- प्रशस्ति सहित भुवन दक्षिण-भुजा दण्डनेनिसि ॥ " वृत्त | सततं धमि धर्मजं ******** 1800 'ळा- 1 ..... सत्य-सङ्- । न्वितने हुँ कमलोद्भव पर हित व्यापार भू-तळ - स्तुत - विद्याधर....... गतने भास्कर-सूनु विक्र''''नं श्री सूर्य - दण्डाधिपम् ॥ प्रभु मनोत्साह-शक्ति-त्रय गुण भरितं मान-सन्मान दान- । ......नाराधकं नित्य-लक्ष्मी । 100111140* 10. 1980
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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