SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२६ जैन - शिलालेख संग्रह आजतककी बनी हुई तथा भविष्य में जो मण्डलि - हजारकी एडदोरे-सत्तर में बनेंगी उन सभी वसदियोंमें मुख्य थी। इसका नाम पद-बसदि ( शाही बसदि ) रक्खा था, और इसे ( उक्त ) भूमिदान दिया । बर्मदेवके ४ लडके थे - मारसिंग, उसका छोटा भाई नन्निय-गंग; उसका छोटा भाई रस-गंग; उसका छोटा भाई भुजबल-गंग । उक्त मारसिंग- देवने आर्द्रवल्लिमे ( उक्त ) कुछ भूमिका दान दिया । इसके अतिरिक्त, माघनन्दि सिद्धान्तदेवका गृहस्थ शिष्य मारसिंह देव ( शक ९८७ विश्वावसु ) और उसका छोटा भाई, प्रभाचन्द्र- सिद्धान्त-देवका शिष्य, नन्नियगङ्गदेव था । इन दोनोंने सिरियूर में ( उक्त ) कुछ भूमिका दान दिया । ( शक ९९२ सौम्य ) देवका दानका समय- - शक ९७६ विजय अनन्तवीर्य सिद्धान्त देवके गृहस्थ-शिष्य रकस-गहने (उक्त सीमासहित ) भूमिका दान दिया । मुनिचन्द्र- सिद्धान्त - देवके गृहस्थ शिष्य भुजवल - गंगने शक १०२७ में, सर्वजितु वर्षमें, ( उक्त ) भूमिका दान किया । नन्निय-गंग-पेर्मादि देवका 'नन्निय-गग' नामका लड़का हुआ । ( इसकी प्रशंसा ), इसने शक वर्ष १०४३ शुभकृत् वर्षमें मण्डलिकी पद-तीर्थ बसदिके लिये, २५ चैत्यालय और बनवानेके साथ-साथ, कुछ जमीनका दान दिया। इसकी पट्टमहादेवी कञ्चल देवी थी। ] २७८ श्रवणबेलगोला - संस्कृत तथा कन्नडै [ शक १०४३ = ११२१ ई० ] (जै० शि० सं० प्र० भा० ) " २७९ श्रवणबेलगोला - संस्कृत तथा कन्नड़ [ शक १०४४ = ११२२ ई०] (जै० शि० सं०, प्र० भा० )
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy