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________________ कल्लूरगुडका लेख ४२५ उसके नाती मरळय्य और वृतुगपेम्र्म्माडि हुए; वृतुगकी सन्तान एरेयप, उसका पुत्र वीरवेडंग, और उसके राचमल्ल उत्पन्न हुआ । राचमलसे एरेयङ्ग उत्पन्न हुआ; जिसका बूतुग, जिसका मरुळ - देव, जिसका गुत्तिय - गंग, जिससे मारसिंग, उसका पुत्र गोविन्दर, उसका सैगोड विजयादित्य, उससे राचमल्ल उत्पन्न हुआ; उससे मारसिंग, उससे कुरुळ- राजिग, उससे गर्वेदगङ्ग, गोविन्दरके छोटे भाईका पुत्र मम्मगोविन्दर था । ( उसकी प्रशसा ) उसका छोटा भाई कलियन था । उसके बाद जिस समय गंगवंश चल रहा था कारगण भाचायोंकी वंशावली निम्न भाति थी दक्षिण- देशवासी, गङ्ग राजाओ के कुलके समुद्धारक, श्रीमूलसंघके नाथ सिंहनन्दि नामके मुनि थे । तदनन्तर अर्हदल्याचार्य, बेहद दामनन्दि भट्टारक, बालचन्द्र भट्टारक, मेघचन्द्र त्रैविद्यदेव, गुणचन्द्र पण्डितदेव । इनके बाद शब्द ब्रह्म गुणनन्दिदेव हुए । इनके बाद महान तार्किक एवं वादी प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव हुए। वे मूलसंघ, कोण्डकुन्दान्वय, क्रानूर्गण तथा मेषपाषाण गच्छके थे । उनके शिष्य माघनन्दिसिद्धान्तदेव हुए । उनके शिष्य प्रभाचन्द्र हुए । ― इनके सधर्मा अनन्तवीर्य मुनि थे; सुनिचन्द्र मुनि भी। उनके शिष्य श्रुतकीर्ति | उनके बाद कनकनन्दि त्रैविद्य हुए, जिन्हें राजाओं के दरबारमे 'त्रिभुवन मल्ल वादिराज' कहा जाता था । इनके सधर्मां माधवचन्द्र थे । उनके शिष्य नैविद्य बालचन्द्र यतीन्द्र थे । प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवके शिष्य बुधचन्द्रदेव थे ( उनकी प्रशसा ) | जिस समय आचार्य - परमेष्टि अन्वयके तिलकस्वरूप बुधचन्द्र- पण्डितदेव विराजमान थे। -- प्रभाचन्द्र-सिद्धान्त-देवके गृहस्थ- शिष्य भुजबल-गंग वम्मैदेव थे । इन प्रसिद्ध बर्मदेव, भुजवल-गग पेडि- देवने 'बसदि ' बनवाई | यह वही बसदि है जिसे पूर्वमे दडिंग और माधवने मण्डलिकी पहाडीपर बनवाई थी, और जिसके लिये उसके गगवशके राजाओने पूजाका प्रवन्ध जारी रखा था, और जिसे बाद मे उन्होने लकडीकी बनवा दी थी, यह
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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