SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कम्बदहलिळका लेख ३९९ गद्ग महादेवी और भुजबल गङ्ग-देवका (प्रशंसासहित) ज्येष्ठ पुत्र नमिय गगन था, (जिसका छोटा भाई) सत्य गंग था। जिस समय सत्यवाक्य कोगुणिवर्म धर्ममहाराजाधिराज परमेश्वर ननिय गग सुख-शान्तिसे राज्य कर रहे थे कलम्बूर-नगराधिपति बर्मि-सेट्टिने एक जिनमन्दिर खड़ा किया (इसकी प्रशंसा)। अपनी बनवाई हुई बसदिकी पूजा तथा ऋपियोंके आहारदानके लिये ( उक्त मितिको) नलियभागपेादि-देवने (उक्त) भूमि दी और चम्मि सेट्टिने उसे लेकर मेप-पाषाण-- गच्छके शुभकीर्ति-देव-भट्टारकको पाद-प्रक्षालनपूर्वक अर्पित कर दिया ] [EC, VII Shimoga ti n° 57 ] २६८ श्रवणबेलगोल-संस्कृत तथा कन्नड़ [शक १०३९=१११७ ई.] [जै. शि. सं., प्र० भा०] २६९ कम्बदहळ्ळि-संस्कृत और कन्नड [शक १०४६, वर्ष विलम्बि (१०४० शरु-१११८ ई० [ लु. राइस ]) [ कम्बदहळ्ळि ( विण्डिगनवले प्रदेश )के, कम्बदराय स्तम्भपर ] (दक्षिणमुख) भद्रमस्तु जिन-शासनस्य ॥ श्री-सूरस्थ-गणे जातश्चारु-चारित्र-भूधरः । भूपालानत-पादाब्जो राद्धान्तार्णव-पारगः ॥ आदावनन्तवीर्यस्तच्छिप्यो बाळचन्द्र-मुनि-मुख्यस् तत्सूनुर्जितमदनस्सिद्धान्ताम्भोनिधिप्रंभाचन्द्रः॥ शिष्यं कल्नेले(?)देवस्तस्याभूत्तन्मनीपिणसूनुविध्वस्तमदनदो गुणमणिरप्टोपवासिमुनिमुख्यः ।।
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy