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________________ ३६८ जैन-शिलालेख संग्रह अवरिबर्गम् ॥ झुनवल-शान्तरनल्यु. य-जय-श्री-ललिन-वन-मुजा-दण्ट भू-। भुज-यन्धनबग्गे ताना। मजनाद रिपु-चाटवी-दवदान ॥ आतनि किरिय॥ वृ ।। शरणायान-भरण्याय-जन-कल्पक्ष्माजनन्यावनी- ! श्वर-सैन्यार्णव-वाडयानळनगेपाशावधि-न्यन्त-भा- । सुर-कन्हार-सुरापगा-निभ-यशश्श्रीवल्लभ नन्नि-गान् तर-देवं जगटेक-दानि नेगळ्ट विश्वम्भरा-भागटोळ् ॥ तदनुजन्मनोदुगनात ॥ का । विक्रम चक्रिय पुण्यदे। चक्र पुरुष-खरूपदि पुट्टितेनल् । विक्रमदिन्टेसेदान। विक्रम-शान्तरनेनिप्प पेसर पडेद ॥ व || आतन मनोरमे पाण्य-कुल-वियत्-तन-चन्द्र-लेखेयु अफरपताक-जय-पताकेयुमेनिसिद चन्दल-देविग ॥ क | उदयाचलदोळहिमकरन् ।। उदधियोळमृतकरनुदयिपन्तिरलवर्गन्द । उदयिसिदं सकळ कळा-। सदन महिमा-निलिम्प-शैल तैल ॥ अन्तु जगजनट पुण्यदि कल्पवृक्षमे क्षत्रिय-खरूपदिं पुट्टितेनि ।। पुष्टि सान्तळिगे-सायिरमुमनेक-च्छत्र-च्छायेयिं सुखं राज्य गेय्युत्तिरेसि
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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