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________________ ३६७ दानसालेका लेख पदाराधना-लब्ध-सप्ताङ्ग-राज्य-राजधानी- पोम्बुर्चदोलु सान्तर-पट्टम तादि सान्तळिगेशायिरमुमनेक-च्छत्र- च्छाय- यिन्दान्दु शान्तरमेम्वे - रडनेय पेसर पडेदनन्दि बलिग्रान्वये शान्तरान्वयाभिधानम पडेदुदातनिं वळिक्कमनेक-राज- सन्तानकमतिक्रान्तमागे तदन्वयदोळु ॥ वृ || विरुदर मृत्यु वीरद नवर्मने चागद जन्म भूमि शा- । न्तर- कुळ बाधि-वर्द्धन शरत्-समयेन्दु समस्त सत्-कळा परिणतनङ्गना-जन-मनोभवनेन्दोसेदन्धियिं बुधोत्करमभित्रणिसल्के नेगळ्ढ धरेयो विभु शान्तर - ओड्डग || क ॥ नव-जळदढल्लि मिष्नुम् सुवुदुवद शान्तरोडगं वाळू गित्तन्- । तेबोलादुढेन्दु पोगळ्व | भुवनाधिपनात्म-समेयोळा - भूपतिय || 1 आतननुज ॥ क || अदटिनिदिरान्त-भूपर- । नदटलदेरदर्थि-निकरम तणिपि जगद्- । विदित या नेगळ्द भू- । प दिलीप वैरि-वीर काळ तैल || तत्पुत्र || क || आयद कळे मदवद्- 1 दायाद-नृपाळ-द-विच्छेदनन- । त्यात दोर्द जय | जायापति दलित-रि-वीरं वीर ॥ अवन मनोरमे गङ्गा- । वाय- पीयूपत्रार्द्धि-सम्भवे लाव- । प्यवति मनोभव-राज्यो- | नव-विळ सज्जन्म भूमि बीरल-देवी ॥
SR No.010007
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymurti M A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1953
Total Pages455
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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